भारत के चार दिवसीय दौरे पर बुधवार (31 मई 2023) को दिल्ली पहुँचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की। इस दौरान दोनों नेताओं ने अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। पीएम मोदी और प्रचंड ने गुरुवार (1 जून 2023) की दोपहर दोनों देशों की सीमा पर बसे भारत के सोनौली के समीप केवटलिया गाँव व नेपाल के भैरहवा के निकट इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट का संयुक्त रूप से वर्चुअल शिलान्यास किया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों प्रधानमंत्रियों ने भारत और नेपाल के बीच मोतिहारी (पूर्वी चंपारण)-अमलेखगंज तेल पाइपलाइन के फेज-2 का संयुक्त रूप से शिलान्यास व रेलवे के कुर्था-बीजलपुरा खंड की ई-योजना का अनावरण किया। इसके साथ ही बथनाहा से नेपाल कस्टम यार्ड तक भारतीय रेल कार्गो ट्रेन को झंडी दिखाकर रवाना किया।
#WATCH | Exchange of agreements takes place between India and Nepal in the presence of Prime Minister Narendra Modi and Nepal Prime Minister Pushpa Kamal Dahal ‘Prachanda’ pic.twitter.com/srfXbgvuSs
— ANI (@ANI) June 1, 2023
संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा, “मुझे स्मरण है, 9 साल पहले साल 2014 में कार्यभार सँभालने के 3 महीने के भीतर नेपाल की मैंने अपनी पहली यात्रा की थी। उस समय मैंने भारत-नेपाल संबंधों के लिए HIT (Highways, I ways and Transway) फॉर्मूला दिया था। मैंने कहा था, कि भारत-नेपाल के बीच ऐसे संबंध स्थापित करेंगे, कि हमारे बॉर्डर्स बैरियर न बनें।”
उल्लेखनीय है, कि पिछले 9 सालों में दोनों देशों के प्रयासों के तहत साझा नदियों पर पुल बनाने, नेपाल से भारत को बिजली निर्यात समेत कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर तेज गति से कार्य चल रहा है। बीरगंज में पहली आइसीपी बनाई गई। भारत-नेपाल बॉर्डर पर पहली पेट्रोलियम पाइपलाइन, रेल लाइन, सीमा पर ट्रांसमिशन शुरू करने की दिशा में भी कार्य हुए है। बताते चलें, कि नेपाल से 450 मेगावाट बिजली भारत आयात कर रहा है।
इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी के पिछले नौ वर्षो के कालखंड में भारत और नेपाल के बीच संबंध और अधिक मजबूत हुए हैं। गौरतलब है, कि नेपाली पीएम के भारत दौरे से कुछ घंटे पहले ही नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने नागरिकता कानून में संशोधन को अनुमति दे दी। यह कानून नेपालियों से विवाह करने वाले विदेशियों को राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ उन्हें तुरंत नागरिकता प्रदान करता है।
दरअसल, चीन के विरोध के चलते यह कानून कई सालों से लटका हुआ था। चीन इन कानून को लेकर नेपाल को इस तर्क के साथ चेतावनी दें रहा था, कि यह कानून तिब्बती शरणार्थियों के परिवारों को नागरिकता और संपत्ति का अधिकार दे सकता है। भारत के बाद सबसे अधिक तिब्बती शरणार्थी नेपाल में ही रहते है।
चीन के विरोध का असर ही था, कि नेपाल इस कानूनी संशोधन को मंजूरी देने से काफी समय से टाल रहा था। नागरिकता कानून में इस संशोधन को मंजूरी देने से नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने दो बार इंकार कर दिया था। उस समय भी माना गया था, कि चीन के प्रभाव में आकर उन्होंने इस कानून को अनुमति नहीं दी थी।