गौरवशाली हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित फिल्म सम्राट पृथ्वीराज को देखने बीते शनिवार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देहरादून स्थित सिल्वर सिटी मल्टीप्लेक्स पहुंचे। इस दौरान सीएम धामी के साथ कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, धन सिंह रावत, प्रेम चंद्र अग्रवाल, गणेश जोशी, सौरभ बहुगुणा, अमृता रावत सिनेमाघर में मौजूद रहे।
बताया जा रहा है, सीएम धामी के साथ इस दौरान कई भाजपा पदाधिकारियों और कर्मचारियों ने भी सम्राट पृथ्वीराज फिल्म देखी। फिल्म देखने के बाद मुख्यमंत्री धामी ने कहा, कि पृथ्वीराज चौहान वीर पुरुष थे। फिल्म के दौरान उनके जीवन चरित्र से काफी कुछ सीखने को मिलता है। सम्राट पृथ्वीराज से चुनौतियों से लड़ने की सीख मिलती है। उन्होंने कहा, कि फिल्म को उत्तराखंड राज्य में टैक्स फ्री किया गया है, ताकि अधिक से अधिक युवा इस फिल्म से प्रेरणा लें।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपने ट्विटर सन्देश में लिखा, कि आज देहरादून स्थित मल्टीप्लेक्स पहुँच कर कैबिनेट के साथियों व अनेक कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत ‘सम्राट पृथ्वीराज’ फिल्म देखी। मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ, कि आप भी भारतीय इतिहास से जुड़ी इस फिल्म को अवश्य देखें।
आज देहरादून स्थित मल्टीप्लेक्स पहुँच कर कैबिनेट के साथियों व अनेक कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत 'सम्राट पृथ्वीराज' फ़िल्म देखी। मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ की आप भी भारतीय इतिहास से जुड़ी इस फ़िल्म को अवश्य देखें।@akshaykumar pic.twitter.com/YHn258V3ZW
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) June 11, 2022
उल्लेखनीय है, कि ‘सम्राट पृथ्वीराज’ अक्षय कुमार के करियर की एक बड़ी फ्लॉप फिल्म बन गई है। पिछले 10 साल में ये पहला अवसर है, कि खिलाड़ी कुमार की बैक टू बैक तीन फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी कदर फ्लॉप हो गई है। सम्राट पृथ्वीराज का निर्देशन चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा किया गया है। आदित्य चोपड़ा के यशराज फिल्म्स के बैनर तले 300 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म को डिजास्टर करार कर दिया गया है। हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के रोल में दर्शको ने अक्षय कुमार को सिरे से नकार दिया। फिल्म ने पहले हफ्ते में सिर्फ 55.05 करोड़ रुपये की कमाई है। वहीं फिल्म का दूसरे हफ्ते में भी कुछ भला होता नहीं नजर आ रहा है।
फिल्म की हुई इस दुर्गति के कई कारण सामने आ रहे है। फिल्म की कास्टिंग पर भी सवाल खड़े हो रहे है। फिल्म शुरूआती दस – पंद्रह मिनट के बाद ही बॉलीवुड के ढर्रे पर फिसल जाती है। फिल्म की कहानी इतिहास के तथ्यों से मेल नहीं खाती है, जो सामन्य तौर पर दर्शको ने स्कूल के पाठ्यक्रमों में पढ़ा था। फिल्म में डाले गए गीतों के चयन में गीतकार, निर्माता और निर्देशक के बीच संवाद की कमी को दर्शाती है। फिल्म में उर्दू के शब्दों का बहुत अधिक इस्तेमाल किया गया है। विज्ञापन की तरह फिल्में निपटाने वाले अक्षय कुमार को ये विचार करना चाहिए था, की जब वे पौराणिक कालखंड में बनी फिल्मो में काम करते है, तो शोध और समय दोनों पर गहन चिंतन अवश्य करना चाहिए।