प्राकृतिक और जैव विविधिताओं से संपन्न देवभूमि उत्तराखंड की धरती पर पर्वतीय क्षेत्र की भूमि के इस्तेमाल के आंकड़े बेहद चिंताजनक है। उत्तराखंड में तेजी से हो रहे पलायन और कृषि योग्य भूमि का अन्य उपयोग होने के चलते अधिकतर क्षेत्रों में भूमि बंजर तथा अन्य वृक्षों और झाड़ियों में परिवर्तित होती जा रही है। हालाँकि इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार समेत कई सामाजिक संगठन आगे बढ़कर भगीरथ प्रयास कर रहे है, और देश के अन्य पर्वतीय राज्यों को भी सुगंध और औषधीय पर्यटन के लिए प्रेरित कर रहे है।
इसी दिशा में बीते शुक्रवार को मेघालय सरकार के कृषि एवं बागवानी विभाग की 15 सदस्यीय टीम ने सहकारी समिति और आजीविका मिशन के तहत टिहरी गढ़वाल तहसील जाखणीधार स्थित नेगयाना गांव और रुद्रप्रयाग क्लस्टर का दौरा किया। इस दौरान मेघालय से आयी टीम ने जाना, कि किस प्रकार उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीण किसान रोजमेरी की खेती करके अपनी आमदनी को बढ़ा रहे है, और इस खेती को जंगली जानवरो से भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।
सुगंधा ऐरोमैटिक संस्था और सीड इन हिमालय के फाउंडर मितेश सेमवाल ने मीडिया को जानकारी दी, कि उत्तराखंड के दौरे पर आयी मेघालय कृषि एवं बागवानी विभाग की उच्च स्तरीय 15 सदस्यीय टीम के साथ दोनों राज्यों के पर्वतीय ग्रामीण किसानो की वर्तमान परिस्थितयों पर विस्तार से चर्चा की गई। इस दौरान उन्हें बताया गया, कि किस प्रकार वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और किसानो के समूह अंतरराज्यीय उच्च स्तरीय प्रशिक्षण संस्थान सी-मैप लखनऊ की सहायता से औषधीय कृषि के क्षेत्र से जुड़ कर अपनी आय बढ़ाने के साथ-साथ अपने जीवन को भी बेहतर कर रहे है।
उन्होंने बताया, कि मेघालय से उत्तराखंड के दौरे पर आयी टीम के साथ इस विषय पर भी चर्चा की गई, कि किस प्रकार दोनों राज्यों के पर्वतीय क्षेत्र के किसान कृषि उद्यमिता और सुगंधित खेती पर एक दूसरे से सीख सकते है। उन्होंने कहा, कि देहरादून स्थित The RIMT संस्थान में आयोजित बैठक के दौरान औषधीय कृषि के क्षेत्र से संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर भी चर्चा की गई। बैठक के दौरान यह भी तय किया गया, कि जल्द ही राज्य के सीमावर्ती ग्रामीण इलाकों और निर्जन हो चुके गावों को दोबारा बसाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की जाएगी।