एक तरफ दक्षिण भारतीय फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लगातार धमाल मचा रही है, वहीं बॉलीवुड की फिल्में आज भी नब्बे के दशक की पुरानी घिसी-पिटी कहानियों के ढर्रे पर चल रही है। शुक्रवार (22 जुलाई 2022) को रिलीज हुई फिल्म शमशेरा (Shamshera) में निर्देशक ने वो सभी प्रचलित फॉर्मूले (ड्रामा, सस्पेंस, थ्रिलर और एक्शन) सबकुछ डालने की कोशिश की है, लेकिन निर्देशक एक चीज मिस कर गए, एक दमदार कहानी। फिल्म ‘शमशेरा’ की कहानी उसी कालखंड की है, जिस कालखंड पर एक औसत दर्जे की फिल्म यश राज फिल्म्स ने ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तां’ के नाम से बनाई थी।
उल्लेखनीय है, कि रणबीर कपूर पूरे चार साल बाद मेगा बजट फिल्म ‘शमशेरा’ से सिनेमाघरों में वापसी कर रहे है। इस वजह से उनके प्रशंसकों को इस फिल्म से काफी उम्मीदे जगी थी। लेकिन फिल्म के निर्देशक ने फिल्म में प्रोपेगंडा परोसने के बजाय प्रोपेगंडे पर ही पूरी फिल्म बना डाली है। बगैर रिसर्च और खोखले दावों के आधार पर रची शमशेरा की कहानी बेहद नकली नजर आती है। रणबीर कपूर की फिल्मी पर्दे पर चार साल बाद वापसी वाली फिल्म ‘शमशेरा’ की भी यही सबसे बड़ी कमी है।
फिल्म ‘शमशेरा’ की कहानी अस्सी के दशक में डाकू के जीवन पर बनने वाली फिल्मो की काल्पनिक पृष्ठभूमि पर ही आधारित है। ऐसे किरदारों पर बॉलीवुड में पहले भी अनगिनत फिल्में बनाई जा चुकी है। फिल्म की कहानी 1871 से 1896 के कालखंड के इर्द गिर्द बुनी गई है। पिछड़ी जातियों और उच्च तबके के बीच का संघर्ष को उभारने का प्रयास ही फिल्म को एक औसत दर्जे का सिनेमा बनाता है।
फिल्म की कहानी के अनुसार, राजपूताना से उत्तर भारत खदेड़ी गई जनजाति खमेरन का मुखिया शमशेरा अंग्रेजों की चाल में फंसकर अपने पूरे कबीले को काजा में कैद करा देता है, और वहां से निकलने की कोशिश में वह मारा जाता है। इसके बाद उसका बेटा बल्ली अंग्रेजों की पलटन का अधिकारी बनने का सपना देखने लगता है। हालाँकि एक दिन कथित दिव्य ज्ञान प्राप्त होने पर बल्ली सुरंग से भाग निकलने में कामयाब हो जाता है।
इसके बाद बल्ली अपने पिता के पुराने साथियों और कुछ नए साथियों को एकत्रित कर अंग्रेजों से अपने कबीले को आजाद कराने के लिए पुराने शमशेरा के अवतार में प्रकट होता है, और वह भी अपना नाम दीवारों पर शमशेरा लिखवाने लगता है। ‘शमशेरा’ फिल्म में दूसरा किरदार शुद्ध सिंह नाम का दरोगा है। जो अंग्रेजो की भरपूर चटुकारिकता के बाद भी बीते 25 सालों से दरोगा की कुर्सी पर ही कयाम है। पुराने शमशेरा को पकड़ने वाले शुद्ध सिंह को ही नए शमशेरा को कब्जे में लेने की जिम्मेदारी मिलती है। लेकिन शुद्ध सिंह अपने अभियान में नाकामयाब रहता है, तो अंग्रेज अफसर फ्रेडी यंग को मौके पर भेज देते है।
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नए शमशेरा और दारोगा शुद्ध सिंह के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद फिल्म की कहानी लंबी खींचती चली जाती है, और पटकथा दम तोड़ने लगती है। फिल्म के किरदार इसके बाद अपने डायलॉग को खुद ही दोहराने लगते है और पूरी फिल्म बोझिल होने लगती है। फिल्म के अन्य कलाकारों में वाणी कपूर का अभिनय निराश करता है, उन्हें फिल्म में सिर्फ ग्लैमर के लिए रखा गया है, जबकि इरावती हर्षे, सौरभ शुक्ला और रोनित रॉय जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों को महज खानापूर्ति के लिए इस्तेमाल किया गया है।
वहीं फिल्म के संगीत में उस कालखंड की झलक नहीं मिलती है, जिस वक्त के आसपास फिल्म की कहानी गढ़ी हुई है। फिल्म के गीत औसत दर्जे के है, और बैकग्राउंड म्यूजिक सिर्फ कानो को तकलीफ पहुँचता है। शमशेरा फिल्म का निर्देशन, संगीत, पटकथा, संपादन और सिनेमैटोग्राफी हर लिहाज से निराश करता है। रणबीर कपूर के पिता दिवंगत ऋषि कपूर ने उन्हें समझाया था, कि वह धोती वाली फिल्मों से दूर ही रहे, अब फिल्म देख कर यही लग रहा है, कि रणबीर कपूर को अपने पिता की सलाह मान लेनी चाहिए थी।