पुष्कर सिंह धामी सरकार ने प्रदेश में ब्रिटिश काल के ठप्पे को हटाने का फैसला लिया है। इसी क्रम में उन स्थानों के नाम बदलने की तैयारी कर ली गई है, जो अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर रखे गए है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने यदि इस प्रस्ताव पर अमल किया, तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का नाम परिवर्तन कर ‘कालौं का डांडा (अंधेरे में डूबे पहाड़)’ हो जाएगा।
उल्लेखनीय है, कि करीब 100 साल से भी ज्यादा पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी की जा रही है। रक्षा मंत्रालय ने लैंसडौन के सैन्य अधिकारियों से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। गौरतलब है, कि यूपी में मुगल काल के दौरान रखे गए कई शहरों के नाम बदल दिए गए है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने इन शहरों को उनकी पौराणिक पहचान के आधार पर नाम दिए है। इसी मार्ग पर चलते हुए अब धामी सरकार ने भी ब्रिटिश काल का ठप्पा लगे शहरों का नाम बदलने का ऐलान किया है।
लैंसडाउन अब कालौं का डांडा कहलाएगा! उत्तराखंड में कई ब्रिटिशकालीन गुलामी की यादें होगी खत्म @ukcmo @OfficeofDhami @mahendrabhatbjp @BJP4UK #Lansdownehttps://t.co/pCP3iJrXZl
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नई दिल्ली में न्यूज 18 से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, कि उन्हें यह प्रेरणा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली है। सीएम धामी ने कहा, कि गुलामी के प्रतीकों को हटाया जाएगा। ऐसे में राज्य में जो भी स्थान ब्रिटिश काल और गुलामी के प्रतीक है, या अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर स्थानों के नाम है, उन्हें बदला जाएगा।
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सीएम धामी ने कहा, कि रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव पर अमल किया, तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का नाम फिर ‘कालौं का डांडा’ (काले बादलों से घिरा पहाड़) हो जाएगा। जानकारी के लिए बता दें, कि लैंसडौन को पहले ‘कालौं का डांडा’ ही कहा जाता था। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिए प्रस्ताव दिया है।
उल्लेखनीय है, कि गढ़वाली शूरवीरों की वीरता और अद्वितीय युद्ध कौशल से प्रभावित होकर 1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना की गई थी। पांच मई 1887 को ले.कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुंची। उस वक्त लैंसडौन को ‘कालौं का डांडा’ कहते थे। इस स्थान का नाम 21 सितंबर 1890 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन रखा गया था।
बता दें, लैंसडौन नगर सैन्य छावनी क्षेत्र है, जो 608 हेक्टेयर में फैला है। शहर के अधिकांश भाग में बांज, बुरांस और चीड़ के वृक्षों के सदाबहार वनों का विस्तार है। यह उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध और पसंदीदा पर्यटक स्थल भी है। स्थानीय लोग लैंसडौन का नाम बदलने की मांग वर्षों से करते आए है।