भारत में शिक्षा व्यवस्था के क्या हाल हैं ये किसी से छिपा नहीं हैं। मौजूदा वक्त में शिक्षा की गुणवत्ता भारत देश में सबसे गंभीर समस्या है। आज शिक्षा का अर्थ छात्र-छात्राओं द्वारा परीक्षा को पास करना भर रह गया है। भारत सरकार तक़रीबन 34 साल बाद शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लेकर आई है। इस शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। आज के समय के अनुसार शिक्षा नीति में परिवर्तन जरुरी हो भी हो गया था।
सरकार का किसी भी नीति को बनाने का मुख्य कारण समस्याओं को पहचानना और उसका बेहतर समाधान करना होता है। इस दिशा में सरकार की नई शिक्षा नीति का मुख्य जोर शिक्षा के समानता और साथ ही सभी को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है।
इससे शिक्षा की गुणवत्ता और उपयोगिता दोनों को बल मिलेगा। स्कूली स्तर पर ही छात्रों को किसी ना किसी प्रोफेशनल और व्यवसायिक स्किल की शिक्षा दी जाएगी। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर छात्रों को इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। इसका अर्थ यह है कि जब बच्चा स्कूल से पढ़कर निकलेगा। तब उसके पास एक ऐसा हुनर होगा जिसका वह आगे की जिंदगी में इस्तेमाल कर सकेगा। इसके लिए स्कूल में ही छात्रों के स्किल डेवलेपमेंट पर जोर दिया जाएगा और जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी।
नई शिक्षा नीति में में बच्चों का तनाव कम करने और छात्रों को ज्यादा से ज्यादा सहूलियत देने के लिए कई बड़ी बातें कही गई है। कक्षा पांचवी तक और जहां संभव हो सके वहां आठवीं तक मातृभाषा में ही शिक्षा उपलब्ध जाएगी।
नई शिक्षा नीति में करोड़ों छात्रों एवं अभिभावकों के लिए जो सबसे बड़ी राहत पहुंचाने वाली खबर है वह 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाने की घोषणा। बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्रों और अभिभावकों के ऊपर हमेशा दबाव बना रहता है और वह और ज्यादा अंक लाने के चक्कर में कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में अब छात्रों को इससे राहत मिल सकती है।
नई शिक्षा नीति दसवीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे। बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा।बोर्ड परीक्षा का मुख्य जोर ज्ञान के परीक्षण पर होगा ताकि छात्रों में रटने की प्रवृत्ति खत्म हो। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि विभिन्न बोर्ड आने वाले समय में बोर्ड परीक्षाओं के प्रैक्टिकल मॉडल को तैयार करेंगे। जैसे वार्षिक, सेमिस्टर और मोड्यूलर बोर्ड परीक्षाएं।
नई शिक्षा नीति में एक खास की खास बात ये है की पहले इंजीनियरिंग करने वाले छात्र संगीत की पढ़ाई एक साथ में नहीं कर पाते थे। लेकिन अब छात्र किसी एक पाठ्यक्रम के साथ दूसरा अन्य विषय भी चुन सकते हैं उदहारण के लिए अगर आप फिजिक्स ऑनर्स की पढ़ाई कर रहे है और आप की रूचि संगीत में भी है तो उस स्थिति में आप संगीत भी साथ साथ सीख सकते हैं।
नई शिक्षा नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट व्यवस्था को लागू किया जायेगा। आज की व्यवस्था के अनुसार अगर चार साल इंजीनियरंग की पढ़ाई करने वाला छात्र छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पता है। तो उसके पास कोई उपाय शेष नहीं बचता सिवाय कोर्स छोड़ने के। लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में एक साल के बाद कोर्स छोड़ने के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह सरकार द्वारा छात्रों के हित में लिया गया एक बड़ा फैसला है।
देश की नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्रों को एमफिल नहीं करना होगा। एमफिल का कोर्स नई शिक्षा नीति में निरस्त कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्र ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके बाद सीधे पीएचडी करेंगे। 4 साल का ग्रेजुएशन डिग्री प्रोग्राम फिर MA और उसके बाद बिना M.Phil के सीधा PhD कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कोर्सेज को खत्म किया गया है। इसे शिक्षा नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
हमारा शिक्षा जगत योग्य शिक्षकों की कमी से लगातार जूझ रहा है। उनको प्रशिक्षण देने वाले B.ed और डीएलएड के कॉलेज शिक्षा माफिया के गढ़ बन गए है इनमे ऐसे कई कॉलेज है जो अस्तित्व में ही नहीं है लेकिन वे डिग्रियां खूब बांटते हैं। यहां से प्रशिक्षण पाने वाले शिक्षक बच्चों को कैसे शिक्षा दे पाएंगे इस बात को आसानी से समझा जा सकता है।
नई शिक्षा नीति इस परंपरा को तोड़ने के प्रयास करती दिख रही है। इसके अनुसार बीएड का कोर्स 4 साल का होगा। 4 वर्षीय बीएड डिग्री 2030 में शिक्षक बनने की न्यूनतम योग्यता होगी। शिक्षकों को पारदर्शी प्रक्रियाओं के जरिए भर्ती किया जाएगा। पदोन्नति योग्यता के आधार पर होगी तथा समय-समय पर शिक्षकों के कार्य-प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा।