वसंत ऋतु के आगमन पर देवभूमि उत्तराखंड की लोक संस्कृति एवं परंपरा से जुड़े फूलदेई पर्व को हर्षोल्लाष और उत्साह से मनाया जा रहा है। गढ़वाल व कुमाऊं मंडल के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक फूलदेई लोक पर्व के उपलक्ष्य में विभिन्न सामाजिक संगठनो ने चित्रकला, नृत्य समेत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भराड़ीसैंण में चल रहे बजट सत्र के दौरान विधानसभा भवन में भी फूलदेई के अवसर पर स्थानीय बच्चों ने पारंपरिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे फूल बरसाए। विधान सभा अध्यक्ष ऋतू भूषण खण्डूरी समेत कैबिनेट मंत्रियों एवं विधायकों ने बच्चों से भेंट कर लोक संस्कृति और परंपरा से जुड़ने के लिए उत्साहवर्धन किया।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूरी ने फूलदेई के अवसर पर अपने ट्विटर संदेश में कहा, कि वसंत ऋतु के आगमन को लेकर उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व फूलदेई मनाया जाने लगा है। यह उत्तराखंड का लोकपर्व है। इसमें छोटे बच्चे सुबह-सवेरे फूल लेकर लोगों की देहरियों पर रखते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते है। फूलदेई लोकपर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचल में आज #फूलदेई का पर्व मनाया जा रहा है। बच्चो द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व पर बच्चे गांव के घरो की दहलीज पर फूल बिखेरते हुए सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते है।#फूलदेई_लोकपर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। pic.twitter.com/zNYhg5i7bi
— Ritu Khanduri Bhushan (@RituKhanduriBJP) March 15, 2023
चैत्र मास की प्रथम तिथि पर फूलदेई पर्व की शुभकामनाएँ देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, फूलदेई, छम्मा देई….देवभूमि उत्तराखण्ड के लोकपर्व फूलदेई की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ। फूलदेई का पर्व हमारे बच्चों एवं युवा पीढ़ी को प्रकृति से प्रेम करने व उसके संरक्षण के प्रति ज़िम्मेदारी का बोध भी कराता है।
फूलदेई, छम्मा देई….
देवभूमि उत्तराखण्ड के लोकपर्व फूलदेई की समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ। फूलदेई का पर्व हमारे बच्चों एवं युवा पीढ़ी को प्रकृति से प्रेम करने व उसके संरक्षण के प्रति ज़िम्मेदारी का बोध भी कराता है। pic.twitter.com/N7wW6CWTQP
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) March 15, 2023
उल्लेखनीय है, कि देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलो में वसंत ऋतु के आगमन में लोकपर्व फूलदेई के दिन छोटे-छोटे बच्चे प्रातः सुबह जल्दी उठकर बुरांस, फ्योंली समेत आड़ू, खुमानी, पुलम, सरसो के पुष्पों को चुनकर लाते है। पुष्पों को चुनकर बच्चों की टोली घर-घर जाकर लोगों की देहरियों पर रखते है और सुख-समृद्धि की कामना करते है। इसके बदले लोगो द्वारा बच्चों को गुड़, चावल और पैसे दिए जाते है।
वहीं पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शंकर घोर तपस्या में लीन हो गए। ऐसे में कई ऋतुएँ बीत जाने के बाद भी जब महादेव तपस्या से नहीं उठे, तो माता पार्वती ने देवताओं और गणो की रक्षा हेतु चैत्र मास की संक्रांति के दिवस पर कैलाश पर घोंघिया माता को पुष्प अर्पित किये। इसके बाद से ही चैत्र संक्रांति पर फूलदेई का पर्व मनाया जाने लगा। फूलदेई को फुलारी, फूल सक्रांति भी कहा जाता है। इन दिनों पर्वतीय अंचलो में जंगली फूलों की बहार रहती है।