वैश्विक महामारी कोरोना का प्रभाव भले ही खत्म हो गया है, लेकिन इससे उत्पन्न समस्याओं को लेकर शोधकर्त्ताओं की लगातार नई-नई रिसर्च सामने आ रही है। इसी क्रम में हालिया अध्ययन में दावा किया गया है, कि कोरोना के कारण कई लोगों को ‘फेस ब्लाइंडनेस’ का सामना भी करना पड़ सकता है।
कॉर्टेक्स जनरल में प्रकाशित शोध में शोधकर्त्ताओं ने दावा किया है, कोरोना से संक्रमित हो चुके कुछ लोगों को चेहरे पहचानने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्त्ताओं ने इस बीमारी को फेस ब्लाइंडनेस (Prosopagnosia) कहा है। शोधकर्त्ताओ ने इसकी पुष्टि के लिए 50 लोगों की गतिविधियों पर स्टडी की। शोध के दौरान पता चला, कि लंबे समय से कोरोना से संक्रमित रहे लोग अधिकांश लोगों की संज्ञानात्मक और अवधारणात्मक क्षमता कम हो गई है।
उल्लेखनीय है, कि इससे पहले यह ज्ञात था, कि कोरोना कई न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का कारण बन सकता है। जिसमे गंध और स्वाद शामिल है। इसके साथ ही ध्यान, स्मृति और भाषा संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है। अमेरिका के डार्टमाउथ कालेज के शोधकर्त्ताओं ने अपने शोध में एनी नामक 28 वर्षीय चित्रकार का उदाहरण देते हुए कहा है, कि मार्च 2020 में कोरोना से ठीक होने के दो माह बाद एनी फिर कोरोना से संक्रमित हो गई।
Could COVID cause ‘face blindness'? Study suggests it’s possible https://t.co/riezPG5crF #FoxNews
— Michael Fox (@Michael79316157) March 15, 2023
शोधकर्त्ताओं के अनुसार, दोबारा संक्रमित होने के कुछ समय बाद एनी को चेहरे पहचानने और नेविगेशन में कठिनाई अनुभव होने लगी। डार्टमाउथ में सोशल परसेप्शन प्रयोगशाला की मेंबर व मनोविज्ञानी मैरी लुइस केसलर ने कहा, कि एनी अब अपने परिचितों की पहचान के लिए उनकी आवाज पर निर्भर है। एनी ने प्रोसोपैगनोसिया के साथ नेविगेशनल डेफिसिट का भी अनुभव किया। शोधकर्त्ता इसे मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी से जोड़कर देख रहे है।
शोधकर्त्ताओं के अनुसार, चेहरा और दिशा भूलने की प्रक्रिया मस्तिष्क के किसी हिस्से के क्षतिग्रस्त होने की वजह से है। यदि मस्तिष्क को कोई हिस्सा डैमेज नहीं हुआ है, तो ऐसी संभावना है, कि ये किसी मानसिक बाधा के कारण हो रहा है। इसके अलावा शारीरिक थकान होना, ध्यान केंद्रित ना होना और ब्रेन फॉग और माइग्रेन की समस्या होना भी पोस्ट कोविड के लक्षण है।