सनातन धर्म और संस्कृति के पुनर्जागरण में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए गीता प्रेस को गाँधी शांति पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 100 वर्षो से धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन कर उन्हें देश-विदेश तक पहुँचाने वाली गीता प्रेस को बधाई दी है। हालांकि कांग्रेस नेता जयराम रमेश इस फैसले से भड़क गए है और उन्होंने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने पर अपनी भड़ास निकलते हुए कहा, कि ये बिलकुल ऐसा है जैसे सावरकर या गोडसे को सम्मान मिला हो।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट पर भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने कहा, “आश्चर्य नहीं हो रहा है, कि कांग्रेसियों को गीता प्रेस से तकलीफ है। यदि ये कोई और प्रेस होती, तो इसकी तारीफ होती, लेकिन गीता प्रेस के कारण इन्हें समस्या है। कांग्रेस को मुस्लिम लीग सेकुलर लगती है, किन्तु गीता प्रेस कम्युनल। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है पर गीता प्रेस सांप्रदायिक है। ये गीता को जिहाद से जोड़ते है और प्रभु श्रीराम और राम मंदिर का विरोध करते है।
Is anyone surprised with the attack by Anti hindu Congress on Gita Press
Had it been say “xyz press” they would have lauded it but because it’s Gita – Congress has a problem
Congress finds Muslim league as secular but Gita Press is communal ; Zakir Naik is shanti ka messiah but… https://t.co/ulqIRL96g1
— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) June 19, 2023
गौरतलब है, कि गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार दिए जाने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे कांग्रेस नेता जयराम रमेश का नाम लिए बगैर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा, कि बीजेपी की मंशा है, कि कांग्रेस पार्टी को हिन्दू विरोधी साबित किया जाए। पार्टी के कुछ नेता बीजेपी के काम को आसान बनाने में लगे हुए है। कांग्रेस नेता जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे है, उसकी भरपाई करने में सदियां गुजर जाएंगी।
#WATCH | "BJP wants Congress to be declared a party against Hindus. Gita Press was established almost 100 years ago when BJP was not even founded. Saying anything against Gita Press is like hurting the sentiments of Hindus. I think leaders holding responsible positions should not… pic.twitter.com/lhuzAEnTL6
— ANI (@ANI) June 19, 2023
कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा, कि गीता प्रेस का विरोध करना हिन्दू विरोधी मानसिकता की पराकाष्ठा है। गीता प्रेस कोई भाजपा थोड़ी है, गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई। लगभग 100 साल हो गए है। तब तो बीजेपी का जन्म भी नहीं हुआ था। गीता प्रेस ने 100 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छापी है।
बता दें, गीता प्रेस यह स्पष्ट कर चुका है, कि उन्हें गाँधी शांति पुरस्कार-2021 स्वीकार है, लेकिन वे इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की धनराशि को स्वीकार नहीं करेंगे। उल्लेखनीय है, कि गीता प्रेस द्वारा करोड़ों की संख्या में प्रकाशित की जा रही धार्मिक पुस्तकें प्रत्येक वर्ष बिकती है। गीता प्रेस में धार्मिक पुस्तकों पर एक बार जिल्द चढ़ाने के बाद इन्हें कभी जमीन पर नहीं रखा जाता है।
गीता प्रेस में इन पवित्र धार्मिक पुस्तकों को रखने के लिए लकड़ी के फट्टे है। इसके साथ ही इन्हें मशीन से नहीं बल्कि हाथों से चिपकाया जाता है, क्योंकि बाजार में बिकने वाली गोंद में जानवरों से जुड़े अवशेषों की मिलावट की जाती है। उल्लेखनीय है, गीताप्रेस सालाना 2 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छापकर देश-विदेश भेजती है।