आखिरकार 40 वर्षो की जिद्दोजहद के बाद भूमाफिया के कब्जे वाली लगभग 400 करोड़ की संपत्ति पर देहरादून जिला प्रशासन कब्जा लेगा। शत्रु संपत्ति (Enemy Property) पर जिलाधिकारी देहरादून सोनिका की कोर्ट ने काबुल हाउस के भवनों पर अवैध रूप से काबिज 17 लोगो के दावे को खारिज करने के साथ ही काबुल हाउस की संपत्ति को खाली करने के लिए अवैध कब्जेदारों को 15 दिन का समय दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अल्टीमेटम की निर्धारित समय सीमा के बाद जिला प्रशासन बलपूर्वक संपत्ति को खाली करवाएगा। दरअसल, देहरादून में 1879 के समय काबुल का सुल्तान मोहम्मद याकूब खान देहरादून आकर बस गया था। 1924 में उसकी मौत के बाद उनके वंशज भी बंटवारे के दौरान विदेश चले गए। इसके बाद में वह पाकिस्तान के नागरिक हो गए।
काबुल के राजा के परिजनों के देहरादून छोड़ने के बाद एकाएक उनके फर्जी रिश्तेदार सहारनपुर, देहरादून में पैदा होते गए और कुछ समय बाद वह देहरादून की शत्रु संपत्तियों के फर्जी दस्तावेज बनाकर अपना कथित दावा करने लगे। इन फर्जी रिश्तेदारों में मो शाहिद, मो खालिद, अब्दुल रजाक का एक गैंग, जबकि दूसरा आरिफ खान और तीसरा तारीख अख्तर का गुट है, जो कि 23 शत्रु संपत्तियों की कब्जेदारी को लेकर रजिस्ट्री कराकर सरकार को चूना लगा चुका है। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई थी, लेकिन आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई।
काबुल हाउस की संपत्ति को कब्जाने के लिए भूमाफिया ने हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के स्थगनादेश का संज्ञान होने के बाद भी फर्जीवाड़े को अंजाम दे डाला। उसने सिविल कोर्ट पंचम को उच्च न्यायालय के आदेश की जानकारी न देकर अपने पक्ष में स्टे प्राप्त कर लिया। जिला शासकीय अधिवक्ता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए तर्क दिया, कि सिविल कोर्ट पंचम ने डिग्री आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में सरकार ने अपील दायर की गई, जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकृत दी है और यह प्रकरण लंबित है।
हालांकि सरकार के विरुद्ध डिक्री हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के आदेश को छुपाते हुए प्राप्त की गई, लिहाजा सिविल कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी माना जाएगा। इसके साथ ही मोहम्मद खालिद की विरासत खारिज होने की दशा में उनके समस्त विक्रय पत्र भी शून्य माने जाएंगे।
जिलाधिकारी के आदेश के अनुसार, वर्ष 1937 – 38 में बंदोबस्त के समय शहरी क्षेत्रों में एक ही खसरा नंबर राजस्व रिकॉर्ड में अंकित किया जाता रहा है। इसके चलते तात्कालिक शहरी क्षेत्र में अलग-अलग खेवट निर्धारित होने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पता था, कि किस खेवट का खसरा नंबर क्या है, शहरी क्षेत्र में देहरादून में बंदोबस्त की संवैधानिक प्रक्रिया ना होने के चलते वर्ष 1947 में देश के बंटवारे के बाद राजस्व रिकॉर्ड में कस्टोडियन संपत्ति दर्ज नहीं हो पाई।
ऐसी संपत्ति का अंकन मुस्लिम समाज की भूमि के रूप में किया गया। अभिलेखीय परिक्षण में जांच के दौरान पाया गया, कि यही भूमि कस्टोडियन से संबंधित है। इसके चलते काबुल हाउस की संपत्ति से मोहम्मद शाहिद खालिद की विरासत खारिज कर दी गई। सुनवाई के दौरान कोर्ट में यह जानकारी भी सामने आई, कि यदि अब्दुल रजाक की कोई संपत्ति खेवट संख्या 47 है, तो उसे फर्जीवाड़ा कर काबुल हाउस की 15, 15 – बी दर्शाकर विक्रय किया जाता रहा। इसी खेवट के आधार पर मो शाहिद खालिद ने फर्जी वारिस के रूप में अपना नाम काबुल हाउस की जमीन पर दर्ज कर दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, देहरादून में शत्रु संपत्तियों को लेकर खाली करवाने के लिए प्रशासन पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का दबाव भी बना हुआ था। दरअसल उक्त संपत्ति का स्वामी केंद्रीय गृह मंत्रालय है। जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी जिला प्रशासन द्वारा की जाती है। इस संपत्ति को खुर्द-बुर्द करने के आरोप लगते रहे है। संपत्ति पर कई लोगों ने फर्जी तरीके से अपना मलिक हक दिखाया था। यह मामला पिछले 40 साल से देहरादून जिलाधिकारी की कोर्ट में चल रहा था।
उल्लेखनीय ह। कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शत्रु संपत्ति के मामले में संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी को निर्देशित किया था, कि इन शत्रु संपत्तियों को अपने कब्जे में लेकर देहरादून के हितों में उपयोग में लाया जाये। अब देहरादून की जिलाधिकारी सोनिका के फैसले के बाद हजारों करोड़ों की शत्रु संपत्तियों को राज्य सरकार अपने कब्जे में लेगी। इन सब संपत्तियों की कीमत हजारों करोड़ों की बताई जा रही है।
बता दें, कि देश के बंटवारे के बाद जो लोग भारत से पाकिस्तान जाकर बस गए थे, उनकी संपत्तियों को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया था। भारत सरकार द्वारा इस संबंध में 10 सितंबर 1959 में आदेश जारी किया गया था। वहीं शत्रु संपत्ति के संबंध में दूसरा आदेश 18 दिसंबर 1971 को जारी किया गया था। भारत की रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत बनाए गए भारत रक्षा नियमों के अंतर्गत भारत सरकार ने पाकिस्तानी राष्ट्रीयता लेने वालों नागरिकों की संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया।