जिला प्रशासन ने आखिरकार 40 वर्षों की जिद्दोजहद के बाद काबुल हाउस को भू-माफिया के चंगुल से मुक्त करा लिया है। बीते शनिवार देहरादून के बीचों बीच ईस्ट कैनाल रोड स्थित शत्रु संपत्ति घोषित काबुल हाउस को प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया। अवैध कब्जेदारों को 15 दिन की मोहलत दी गई थी। निर्धारित वक्त के भीतर कब्जा न छोड़ने पर प्रशासन ने दो नवंबर को जबरन काबुल हाउस के भवन खाली करने के साथ ही संपत्ति को सील कर दिया था।
वर्तमान समय में यह 400 करोड़ रुपए की संपत्ति बताई जा रही है है। सरकार द्वारा काबुल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित किये जाने के बाद इसके रखरखाव की जिम्मेदारी देहरादून जिला प्रशासन के जिम्मे थी। बता दें, कि अक्टूबर में ही जिला अदालत ने काबुल हाउस में रह रहे परिवारों को इस परिसर को खाली करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद काबुल हाउस में रहने वाले परिवारों ने जिला अदालत के इस निर्णय को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
नैनीताल हाई कोर्ट ने मानवीय आधार पर इन परिवारों को एक दिसंबर तक की राहत दी थी। उच्च न्यायालय से मिली मोहलत के बाद आठ परिवार वापस लौट आए थे, हालांकि कोर्ट की अवधि एक दिसंबर से पहले ही संबंधित परिवारों ने काबुल हाउस की संपत्ति खाली कर दी थी। दरअसल, काबुल हाउस आजादी से पहले अफगानिस्तान के निर्वासित राजा याकूब खान का महल हुआ करता था। इसे आज मंगला देवी कॉलेज कहते है। इसे याकूब खान ने 1879 में बनवाया था।
1947 के बंटवारे के बाद उसके वशंज पाकिस्तान चले गए। इसके बाद कई लोगों ने अवैध दस्तावेज तैयार कर इस संपत्ति पर कब्जा कर लिया था। इसे खाली कराने को लेकर देहरादून प्रशासन 40 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहा था। दरअसल, शत्रु संपत्तियाँ उन लोगों से जुड़ी संपत्ति को कहा जाता है, जो लोग बंटवारे के दौरान और 1962 और 1965 के युद्ध के बाद भारत छोड़ने के बाद पाकिस्तान और चीन की नागरिकता ले चुके है। संसद ने मार्च 2017 में शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यकरण) अधिनियम 2016 पारित किया था।
इसमें युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन चले गए लोगों की छोड़ी गई संपत्ति पर उत्तराधिकार के दावों को रोकने के प्रावधान किए गए थे। दरअसल दो देशों में युद्ध छिड़ने पर ‘शत्रु देश’ के नागरिकों की संपत्ति सरकार कब्जे में ले लेती है, ताकि शत्रु युद्ध के दौरान उसका लाभ न उठा सके। इसके अंतर्गत भारत ने भी 1962 में चीन, 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध छिड़ने पर भारत सुरक्षा अधिनियम के तहत इन देशों के नागिरकों की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया था।