उत्तरकाशी में सोमवार (12 दिसंबर 2023) को धूमधाम से मंगसीर बग्वाल धूमधाम से मनाई गई। उल्लेखनीय है, कि मैदानी क्षेत्र में मनायी जाने वाली दीपावली के ठीक एक महीने बाद उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में जौनपुर और जौनसार क्षेत्र में परंपरागत त्यौहार मनाया जाता है जिसे मंगसीर बग्वाल कहा जाता है।
सोमवार (11 दिसंबर 2023) को उत्तराकाशी में मंगसीर बग्वाल के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वही मंगसीर बग्वाल से एक दिन पहले गढ़भोज का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही पारंपरिक वेशभूषा, गढवाल के पारंपरिक खेल, पारंपरिक गीत पर स्थानीय निवासी झूमते है। इसके साथ ही कविताओं का पाठ और भैलू नृत्य भी किया जाता है।
बता दें, कि मंगसीर बग्वाल तीन दिन का कार्यक्रम होता है। पहले दिन छोटी बग्वाल, दूसरे दिन बड़ी बग्वाल और तीसरे दिन बदराज का त्यौहार होता है। जिसे व्रततोड़ भी कहा जाता है। दरअसल, इसमें पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली विशेष प्रकार की घास बाबैं का मजबूत रस्सा बनाया जाता है, जिसे ग्रामीण दो हिस्सों में बाँटटकर खींचते है। इस रस्सी को स्थानीय भाषा में व्रत भी कहा जाता है, और इस रस्सी को तोड़ने की प्रक्रिया को व्रततोड़ कहते है।
इस व्रत की बाकायदा पंडित द्वारा पहले पूजा की जाती है। कई लोग इस मान्यता को समुद्र मंथन की पौराणिक गाथा से भी जोड़ते है। इस अवसर पर स्थानीय ग्रामीण गांव व घरों में सफाई करते हैं और स्वांला, पकौड़ी और पापड़ी बनाते है। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार, मंगसीर बग्वाल गढ़वाल राज्य के वीर सेनापति माधो सिंह भंडारी के युद्ध जीतकर घर आने की खुशी में मनाया जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, साल 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह का शासन था। उनके शासनकाल के दौरान तिब्बती लुटेरे गढ़वाल में आकर लूटपाट करते थे। इस पर राजा ने अपने सेनापति को उनसे युद्ध के लिए भेजा। जिसमें माधों सिंह भंडारी की सेना ने तिब्बतियों को रणभूमि में परास्त कर दिया था। इस ऐतिहासिक जीत के बाद वीर माधो सिंह भंडारी के घर लौटने की खुशी में प्रजा ने मंगसीर बग्वाल मनाई थी। तब से गढ़वाल क्षेत्र में मंगसिर बग्वाल मनाई जाती है।