नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा जारी शोध पत्र में ये जानकारी सामने आई है, कि वैश्विक महामारी कोरोना जैसी चुनौती के बावजूद भारत में बीते 12 साल में गरीबी की दर में 12.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। एनसीएइआर के अर्थशास्त्रियों के एक पेपर (जिसका शीर्षक ‘बदलते समाज में सामाजिक सुरक्षा दायरा पर पुनर्विचार’ है) में गरीबी के आँकड़ों को लेकर यह अनुमान जारी किया गया है।
इस आर्थिक सर्वे में बताया गया है, कि भारत में गरीबी अनुपात में तेजी से गिरावट आई है। 2011-12 में ये 21.2 प्रतिशत थी और जो अब घटकर 8.5 फीसदी गिरावट के साथ दर्ज की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये आँकड़ा 24.8 से 8.6 फीसद तक आया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में गरीबी 13.4 फीसदी से घटकर 8.4 फीसदी तक रिकॉर्ड की गई।
The @timesofindia reported the decline in poverty headcount based on the inflation-adjusted Tendulkar line using the latest round of the India Human Development Survey @ihdscorner
This was presented by Prof @SonaldeDesai at @ncaer's India Policy Forum 2024 yesterday. pic.twitter.com/CjKlt9iTvN
— NCAER (@ncaer) July 3, 2024
इस रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे की वेव 3, वेव 2 और वेव 1 के आंकड़ों को आधार बनाया। सर्वे में बताया गया है, कि देश में भले ही केंद्र सरकार से मिलने वाले लाभों के कारण ये परिवर्तन संभव हुआ है, किंतु ये बात भी गौर करने वाली है, कि सामान्य नागरिकों के जीवन में अचानक घटित होने वाली घटनाएँ उन्हें फिर से गरीबी में ढकेल सकती है।
सोनल डे देसाई ने अपनी रिपोर्ट में इस बिंदु का प्रमुखता से विश्लेषण किया है, कि इन 8.5 फीसद गरीबों में 3.2 फीसद जन्म से गरीब थे, जबकि 5.3 फीसद जीवन में हुए किसी हादसे के बाद गरीब बने। सर्वे में देश में हो रहे आर्थिक विकास और गरीबी के स्तर में आई कमी जैसे मुद्दों पर बात की गई है।
New wave of IHDS, a panel dataset of ~40000 households, places headcount poverty ratio at 8.5% ⬇️from 21.2% in 2011-12@SonaldeDesai highlights that out of the 8.5% poor, 3.2% were 'poor by birth' while 5.3% were due to 'accidents of life'
Link to paper: https://t.co/ZAa8gzZJnR pic.twitter.com/Y39k0t9Z37
— NCAER (@ncaer) July 3, 2024
शोध के दस्तावेजों में कहा गया है, कि इकनॉमिक ग्रोथ और गरीबी की स्थिति में कमी से एक गतिशील परिवेश पैदा होता है। इसके लिए कारगर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की जरूरत होती है। सामाजिक बदलाव की रफ्तार के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बनाए रखना भारत के लिए एक प्रमुख चुनौती होगी।
बता दें, कि इससे पहले नीति आयोग के सीईओ बी.वी. आर सुब्रह्मण्यम ने कुछ महीने पहले भारत में गरीबी को लेकर एक अनुमान जारी कर कहा था, कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है, कि देश में गरीबी घटकर 5 फीसदी रह गई है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों के पास पैसे आ रहे है।
जानकारी के अनुसार, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च भारत का सबसे पुराना, स्वतंत्र और गैर-लाभकारी, आर्थिक नीति अनुसंधान थिंक टैंक है। इसकी स्थापना 1956 में नई दिल्ली में की गई थी। अपनी स्थापना के कुछ दशकों के भीतर ही इस संस्था ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अगल मुकाम हासिल किया है। यह सरकारों और उद्योग के लिए अनुदान-वित्तपोषित अनुसंधान और कमीशन अध्ययन का कार्य करता है, और यह वैश्विक स्तर पर उन कुछ थिंक टैंकों में से एक है जो प्राथमिक डेटा भी एकत्र करते है।