भारतीय एयोस्पेस वैज्ञानिक नंबी नारायणन को षड्यंत्र में फंसाने और विदेशी जासूस होने के आरोप के मामले में सीबीआई ने तिरुवनंतपुरम स्थित चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतिम चार्जशीट दायर चुकी है। चार्जशीट के सार्वजनिक होने के बाद वैज्ञानिक नंबी नारायण केस एक बार फिर सुर्खियों में है। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में कहा है, कि 1994 का यह जासूसी मामला झूठा था।
सीबीआई ने तिरुवनंतपुरम में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में कहा, कि यह मामला शुरू से ही कानून और अधिकार के दुरुपयोग का उदाहरण है। चार्जशीट में कहा गया है, ‘मरियम रशीदा को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया और झूठे मामले में फंसाया गया।’ पुलिस ने यह चार्ज शीट जून के आखिरी हफ्ते में दाखिल की थी, जिसे बुधवार को सार्वजनिक किया गया।
सीबीआई ने कोर्ट को बताया, कि 1994 का इसरो से जुड़ा जासूसी मामला कथित तौर पर केरल पुलिस के एक तत्कालीन स्पेशल ब्रांच अधिकारी द्वारा भारत में एक मालदीव की महिला को अवैध रूप से हिरासत में रखने को उचित ठहराने के लिए बनाया गया था, क्योंकि उसने उनके शारीरिक संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इससे खुद अपमानित महसूस कर रहे पुलिस अधिकारी ने कानून और अधिकार के दुरुपयोग करते हुए महिला को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया और झूठे मामले में फंसाया।’
कोर्ट में दाखिल आरोप पत्र में सीबीआई ने बताया है, कि मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा ने केरल पुलिस की तत्कालीन विशेष शाखा के अधिकारी की अनैतिक इच्छा को मानने से इंकार कर दिया था। इसके बाद विजयन ने रशीदा के ट्रैवल दस्तावेज और हवाई टिकट छीन लिए ताकि महिला देश से बाहर न जा सके। इसके बाद विजयन को पता लगा, कि रशीदा इसरो के वैज्ञानिक डी शशिकुमारन के संपर्क में थी। इसके बाद रशीदा और उसकी मालदीव की दोस्त फौजिया हसन पर निगरानी रखी गई।
कोर्ट में सीबीआई की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, इस मामले में पुलिस ने सहायक खुफिया ब्यूरो SIB को भी महिलाओं के बारे में सूचना दी गई थी। हालांकि, विदेशी नागरिकों की जांच करने वाली आईबी के अधिकारियों को इस मामले में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। फिर पुलिस कमिश्नर ने इसरो के गोपनीय दस्तावेज चोरी होने की खबरें मीडिया में प्लांट करवाईं।
मरियम रशीदा को दोबारा जिस रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, उसमें विजयन ने लिखा था, कि दोनों महिलाएँ देश-विदेश में कई लोगों से मिल कर भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ काम कर रही हैं, इससे भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ जो संबंध हैं उस पर असर पड़ सकता है। सीबीआई ने आरोप पत्र में आरोप लगाया कि ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत केस दर्ज करने के बाद केरल पुलिस ने इस मामले में जासूसी का केस दर्ज किया गया और फिर इसकी जांच की जिम्मेदारी एसआईटी को सौंप दी जाती है।
इसके बाद एसआईटी ने इस मामले में नंबी नारायण समेत 4 अन्य वैज्ञानिकों को गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने कोर्ट को बताया, कि एसआईटी ने गिरफ्तारी के बाद इन वैज्ञानिकों पर कई और गलत आरोप लगाए गए। इस मामले नंबी नारायणन और अन्य आरोपी वैज्ञानिकों के खिलाफ कोई सबूत नहीं पाया गया। अप्रैल 1996 में एर्नाकुलम के CJM के समक्ष दायर रिपोर्ट में सीबीआई ने बताया था, कि आरोपितों के खिलाफ जो आरोप हैं वो साबित नहीं हो रहे।
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— Onmanorama (@Onmanorama) July 11, 2024
वहीं 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा दोबारा जासूसी कांड की जाँच वाले फैसले को रद्द कर दिया था। जून 2011 में तत्कालीन ओमान चांडी की सरकार ने सीबीआई द्वारा दोषी पाए गए तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से इंकार कर दिया। 2018 में शीर्ष अदालत ने 50 लाख रुपए मुआवजा देने के लिए केरल सरकार को आदेश दिया। अप्रैल 2021 में जैन कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने CBI से केरल पुलिस के सात और आईबी के 11 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए थे।