आवास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने दिल्ली के कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से हुई तीन छात्रों की मौत के मामले का संज्ञान लेते हुए प्रदेश में संचालित कोचिंग सेंटरों के लिए निर्देश जारी किए है। कैबिनेट मंत्री ने अपर सचिव आवास अतर सिंह और एमडीडीए के उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी से दूरभाष पर बात कर सख्त निर्देश देते हुए कहा, कि प्रदेश के कोचिंग सेंटर में मानक अनुसार कार्य नहीं होने पर तत्काल कार्रवाई की जाये।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आवास मंत्री ने कहा, कि दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने की घटना के बाद तीन छात्र, (दो लड़कियां और एक लड़का) निकलने में असफल रहे, जिसके चलते उनकी दुखद मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा, कि ऐसी घटना उत्तराखंड में न हो, इसके लिए कोचिंग सेंटर पर अभियान चलाएं।
कैबिनेट मंत्री ने सख्त निर्देश देते हुए कहा, कि प्रदेश के कोचिंग सेंटर में मानक अनुसार कार्य नहीं होने पर तत्काल कार्रवाई करें। उन्होंने निर्देशित करते हुए कहा, कि बेसमेंट में सुरक्षा उपाय तथा आपदा के समय निकासी जैसे अन्य आवश्यक कार्य न होने पर कोचिंग सेंटर के खिलाफ कार्रवाई की जाए। कैबिनेट मंत्री ने यह भी कहा, कि जिन पर कार्रवाई की जा रही है, उन पर शीघ्र कार्रवाई की प्रक्रिया को अमल में लाएं।
गौरतलब है, कि राजधानी देहरादून में विशेषकर करनपुर क्षेत्र में कोचिंग इंस्टीट्यूट तंग गलियों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में खुले हुए है। यहां दमकल विभाग के वाहन के लिए निकलने की जगह भी नहीं है। इस क्षेत्र में खुले कई कोचिंग सेंटर भवनों के बेसमेंट में संचालित हो रहे हैं। बारिश के दौरान जलभराव की स्थिति से निपटने के लिए इन निजी संस्थानों के पास पर्याप्त इंतजाम नहीं है।
इसके अलावा कुछ इमारतों में बरसात के कारण सीलन और काई जम गई है, जो अतिरिक्त खतरा उत्पन्न कर रही है। वहीं देहरादून में ज्यादात्तर इंस्टीट्यूट ग्राउंड फ्लोर पर संचालित नहीं हो रहे हैं। वे दूसरी, तीसरी या चौथी मंजिल पर चल रहे हैं। कई जगहों पर इंस्टीट्यूट तक पहुंचने के लिए बेहद संकरी सीढ़ियों का उपयोग करना पड़ता है।
कुछ स्थानों पर इंस्टीट्यूट तक पहुंचने के लिए इमारतों से अलग लोहे की सीढ़ियां बनाई गई हैं। कोचिंग सेंटरों में फायर सेफ्टी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अधिकांश जगहों पर फायर एक्सटिंग्विशर तो लगे हैं, लेकिन वे या तो खराब हैं या उनकी वैधता समाप्त हो चुकी है। दुर्घटना के समय इनके काम करने की संभावना भी बेहद कम है।