7 फरवरी 1968 को रोहतांग दर्रे के नजदीक वायु सेना का प्लेन क्रैश हो गया था। अब पूरे 56 सालों बाद विमान हादसे में बलिदान हुए वायुसैनिक का शव खोज लिया गया है। इसी क्रम में चमोली जिले के थराली तहसील के गांव कोलपुड़ी के लापता सैनिक का पार्थिव शरीर 56 साल बाद अपने गांव पहुंचेगा। नारायण सिंह के परिवार को जिस दिन की प्रतीक्षा थी, वह समय आखिरकार आ गया, हालाँकि बीते 56 साल में सब कुछ बदल गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चमोली जिले के नारायण सिंह वर्ष 1968 में हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे में वायुसेना के एएन-12 विमान क्रैश होने पर लापता हो गए थे। सर्च अभियान में 56 साल बाद जिन चार सैनिकों के अवशेष मिले हैं, उनमें एक कोलपुड़ी गांव के नारायण सिंह का शव भी शामिल है।
चमोली से बड़ी खबर,56 साल बाद मिला शहीद का शव,1968 में हिमाचल के रोहतांग दर्रे में हुआ था विमान हादसा,सेना के सर्च ऑपरेशन में मिला शव,शहीद का सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार ।#Uttarakhand #chamoli pic.twitter.com/NTX9rdTIMn
— News18 Uttarakhand (@News18_UK) October 2, 2024
कोलपुड़ी गांव के प्रधान और नारायण सिंह के भतीजे जयवीर सिंह ने मीडिया को बताया, कि सोमवार को वायु सेना के अधिकारियों ने इस संबंध में सूचना भिजवाई। उन्होंने बताया, कि जेब में मिले पर्स में एक कागज में नारायण सिंह ग्राम कोलपुड़ी और बसंती देवी नाम दर्ज था। साथ ही उनकी वर्दी के नेम प्लेट पर भी उनका नाम अंकित था।
वायु सेना के अधिकारियों ने जयवीर सिंह को जानकारी दी, कि बर्फ में शव सुरक्षित था, लेकिन बर्फ से बाहर निकाले जाने के बाद शव गलने लगा है, जिससे उसे सुरक्षित किया जा रहा है। साथ ही उनका डीएनए सैंपल लिया जा रहा है। उन्होंने बताया, कि रिकार्ड के अनुसार नारायण सिंह सेना के मेडिकल कोर में तैनात थे। उनका पार्थिव शरीर गुरुवार तक गांव पहुंचने की संभावना जताई जा रही है।
वहीं इस खबर के मिलते ही परिवार के कई दशक पहले की यादें फिर से ताजा हो गई है। पुरानी यादों में खोये जयवीर सिंह ने बताया, कि एक बार बसंती देवी ने बताया था, कि पति नारायण सिंह सेना में तैनात थे। वह साल में एक बार घर आते थे, अक्सर पत्रों के माध्यम से ही हाल-चाल पता लगता था। एक बार टेलीग्राम आया जिसमें अंग्रेजी भाषा में विमान के लापता होने और उसमें नारायण सिंह के लापता होने की बात लिखी थी।
विमान हादसे की सूचना के बाद परिवार इंतजार करता रहा, लेकिन कोई खबर नहीं आई। जब तक बसंती देवी जीवित रही, तब तक वो नारायण सिंह का इंतजार करती रहीं। वर्ष 2011 में बसंती देवी का देहांत हो गया। नारायण सिंह के साथी रहे कोलपुड़ी के सूबेदार गोविंद सिंह, सूबेदार हीरा सिंह बिष्ट और भवान सिंह नेगी बताते हैं, कि नारायण सिंह बेहद सरल और सौम्य स्वभाव के थे। उन्हें बचपन से ही सेना में भर्ती होने का जुनून था। 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।