केदारनाथ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने जीत दर्ज की है। बदरीनाथ उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा के लिए केदारनाथ सीट नाक का सवाल बन गई थी। वहीं तीन महीने पहले बदरीनाथ सीट पर मिली सफलता से उत्साहित कांग्रेस ने भी इस उपचुनाव में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी, लेकिन विजय पाने की उसकी इच्छा अधूरी रह गई।
केदारनाथ उपचुनाव में मिली जीत से मुख़्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का राजनीतिक कद भी बढ़ गया है। सीएम धामी की मेहनत और प्रत्याशी आशा नौटियाल की छवि ने जीत की पटकथा लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस की ओर से आक्रामक प्रचार और आरोप-प्रत्यारोपों के बावजूद सीएम धामी लगातार केदारानाथ का दौरा करते रहे। मुख्यमंत्री का सीधे केदारघाटी की जनता से संपर्क करना भी भाजपा के लिए फायदेमंद रहा।
केदारनाथ की जीत ने न सिर्फ राज्य में भाजपा में नए उत्साह का संचार तो किया है, बल्कि पूरे देश में पार्टी की सोच, विचारधारा को अधिक मजबूती देने का संदेश दिया है। केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल दिखा। जीत के बाद मुख्यमंत्री धामी का कद केंद्रीय नेतृत्व के सामने और बढ़ गया है।
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी उपचुनाव का रुख भाजपा के पक्ष में कराने को ताकत झोंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आपदा के प्रभावितों के लिए विशेष पैकेज से लेकर विधानसभा क्षेत्र के विकास से जुड़ी योजनाओं की मंजूरी तक के फैसले फटाफट लिए गए। चुनाव की घोषणा से पहले और प्रचार के आखिरी दिन भी सीएम धामी ने क्षेत्र का दौरा किया और बड़ी सूझबूझ के साथ स्थानीय लोगों की नाराजगी को दूर किया।
वहीं उपचुनाव के विधिवत घोषणा से लगभग तीन महीने पहले चुनावी प्रबंधन के रणनीतिकारों को मैदान में उतार दिया गया था। युवा मंत्री सौरभ बहुगुणा और प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी संग विधायक भरत चौधरी ने क्षेत्र में प्रचार थमने तक अधिकतम समय गुजारा।
बीते शनिवार को घोषित केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव परिणाम के द्वारा जनता ने सभी संभावनाओं को नकारते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और आशा नौटियाल पर अपनी मुहर लगाई। वहीं केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने पूरी तरह चारधाम यात्रा के मुद्दों पर फोकस किया, साथ ही क्षेत्रवाद से लेकर जातिवाद का कार्ड खुलकर खेला।
कांग्रेस के नेता इस उपचुनाव में एक बार फिर ये साबित करने में असफल रहे, कि आखिर केदारनाथ के मतदाता उनकी पार्टी का विधायक क्यों चुनें। जबकि इसी केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र में नौ हजार से अधिक मतदाता ऐसे निकल कर आए हैं, जिन्होंने निर्दलीय त्रिभुवन सिंह को वोट दिया। कांग्रेस के हार के पीछे निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन सिंह चौहान को भी बड़ी वजह माना जा रहा है।
इस सीट पर प्रचंड जीत के बाद भाजपा उत्साहित है, तो वहीं कांग्रेस में हार के कारण मायूसी छायी हुई है। पहाड़ के इस चुनाव ने पुख्ता कर दिया है कि इस विधानसभा क्षेत्र में ऐसे मतदाता भी हैं जिन्हें भाजपा-कांग्रेस दोनों पसंद नहीं हैं। चुनावी नतीजों में कुलदीप के बाद अब त्रिभुवन का नाम दोनों दलों का लंबे समय तक पीछा करेगा।