भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संबंध में दायर एक याचिका की सुनवाई पर माननीय मद्रास उच्च न्यायलय द्वारा कहा गया कि केंद्र सरकार को इस मामले स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। न्यायलय में दायर याचिका में यह कहा गया है, कि भारतीय मुद्रा में नेताजी सुभाष चंद्र जी का चित्र अंकित किया जाये एवं उन्हें हिंदुस्तान के राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाये।
याचिकाकर्ता द्वारा अपनी याचिका में कहा है,कि स्वतंत्र भारत की सवर्प्रथम सरकार का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा अंडमान निकोबार में किया गया था। और उस समय तक़रीबन 21 देशो ने उनकी सरकार को मान्यता प्रदान की थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ही वो पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन कर तत्कालीन ब्रिटिश शासन को चुनौती देते हुए उनसे युद्ध किया था। नेताजी द्वारा अंग्रेजो को परास्त कर पहली स्वतंत्र भारत सरकार का गठन किया था। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय नोटों को छापना भी प्रारम्भ कर दिया था।
गौरतलब है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार भारत की भूमि में ही बनायीं थी, ना कि अन्य किसी राष्ट्र की धरती पर। इसलिए इसे दलाई लांबा द्वारा गठित तिब्बत सरकार के सामान नहीं माना जा सकता। क्योकि यह तिब्बत की भूमि पर नहीं बनायीं गयी है। यह तिब्बती सरकार तिब्बत से अन्यत्र अन्य राष्ट्र से संचालित होती है, जबकि नेताजी द्वारा पहली स्वतंत्र भारत सरकार का गठन भारत की भूमि पर किया गया था।
माननीय उच्च न्यायलय द्वारा इस याचिका के संबंध में टिप्पणी करते हुए कहा, कि यह मामला न्यायपालिका के क्षेत्र में नहीं आता है। परन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता, कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यदि किसी का सबसे अधिक योगदान है तो वह महान नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा ब्रिटिश शासनकाल कि उस वक्त सर्वोच्च आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाबजूद उन्होंने राष्ट्र प्रेम के चलते अंग्रेजों की इस नौकरी को ठोकर मार दी थी।
माननीय उच्च न्यायलय द्वारा कहा गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा देश को स्वतंत्र करवाने के प्रयास की कोई तुलना नहीं हो सकती है। इसलिए वे भारत सरकार से नेताजी के अमूल्य योगदान को देखते हुए अनुरोध कर कर रहे है, कि वे नेताजी के चित्र को भारतीय मुद्रा में अंकित करने के मामले में स्वतः संज्ञान ले।