मनुष्य के जीवन में सूर्य की किरणों का विशेष महत्त्व होता है। सेहत के लिए बेहद जरुरी विटामिन-डी का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य की किरणें है। मानव शरीर के लिए जरुरी मात्रा का 95 फीसदी भाग धूप सेंकने के मिल सकता है। सूर्य से मिलने वाली धूप सिर्फ मानव सभ्यता के लिए ही नहीं बल्कि पेड़ – पौधों और पशुओं के लिए भी बेहद आवशयक है।
वैसे तो सामान्य तौर पर प्रदिदिन सूरज की रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है, किन्तु धरती लोक पर कई ऐसे स्थान है। जहां के निवासी कुछ महीनो के लिए सूर्य की रोशनी से वंचित रह जाते है। इटली देश के विगल्लेना नाम के गाँव के निवासी इसी समस्या से जूझ रहे थे। विशालकाय पर्वतो के नीचे घाटी में स्थित से इस गांव में सूरज की किरणें नहीं पहुंच पाती थी।
इटली के मिलान शहर के लगभग 130 किलोमीटर दुरी पर स्थित विगल्लेना गांव की जनसंख्या दो सौ के करीब है। विगल्लेना गाँव के रहने वालो की समस्या यह थी, कि शरद ऋतु के आगमन पर नवंबर से फरवरी महीने तक इस गाँव में सूर्य नहीं दिखाई देता था। ग्रामीणों की इस समस्या के मद्देनजर गांव के एक शिल्पकार ने एक उपाय तलाश लिया।
आर्किटेक्ट ने गांव के मेयर की सहायता से विगल्लेना गांव के लिए एक कृत्रिम सूरज का निर्माण कर दिया। गांव में सूरज की रोशनी पहुंचने के लिए आर्किटेक्ट ने एक जुगाड़ किया और गाँव वालो की वर्षो पुरानी समस्या का समाधान कर दिया। वर्ष 2006 में आर्किटेक्ट ने गांव के मेयर की सहायता से पर्वतो के शिखर पर चालीस वर्ग किलोमीटर का एक शीशा लगवा दिया।
विशालकाय शीशे की स्थापना कुछ इस प्रकार की गयी, कि शीशे पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी रिफलेक्ट होकर सीधे गांव के ऊपर पड़े। पर्वतो की ऊँची चोटी पर लगाए गए शीशे दिन में 6 घंटे गांव को रोशन करते है। खबरों के अनुसार, शीशे का वजन लगभग 1.1 टन के बराबर है। इस पूरी योजना की लगत एक लाख यूरो बतायी जा रही है।
बेहद सामान्य विचार किन्तु अद्भुत तकनीक की मदद से निर्मित शीशे कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित किये जाते है। दरअसल विगल्लेना गाँव सूरज की रोशनी के आभाव में तीन महीने तक अंधेरे में डूबा रहता था। इसके चलते गाँव में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा था। विगल्लेना गांव के मेयर पियरफ्रेंको मडाली ने कहना है, कि इस कृत्रिम सूरज का विचार किसी साइंसिस्ट का नहीं बल्कि एक सामान्य व्यक्ति का है।
गाँव में रहने वाले व्यक्ति को यह विचार तब आया, जब शीतकाल में लोग जरुरी धूप ना मिलने के कारण अपने घरों में ही रहने लगे। कड़ाके की सर्दी और घुप अंधकार के कारण गांव का बाजार जल्द बंद हो जाते थे। लगभग 87 लाख रुपए की लागत से बनाये गए आर्टीफिशियल सूरज को तैयार करने के बाद यह गाँव दुनियाभर के लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।