उत्तराखंड की लोक संस्कृति वर्तमान समय में संरक्षण के आभाव में दम तोड़ती नजर आ रही है, वैसे तो लोक संस्कृति के अनेक रंग – रूप होते है, परन्तु किसी भी संस्कृति में उसकी भोजन शैली और खान पान का विशेष महत्व होता है। पारंपरिक भोजन व्यवहार व्यक्ति को उसकी सांस्कृतिक जड़ो से जोड़े रखता है।
वर्तमान संचार क्रांति के युग में लोगों के सामने विभिन्न संस्कृतियों के भोजन के विकल्प मौजूद है, और कुछ वर्षो से विदेशो से आययित भोजन ने हिन्दुस्थान के हर कोने में अपनी जड़े जमा ली है। उत्तराखंड राज्य भी विदेशी फ़ूड जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर, पास्ता, मोमो, चाउमीन जैसे सेहत के लिए हानिकारक स्ट्रीट फ़ूड के कॉउंटरो से भरा पड़ा है।
उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन आज के दौर में बेहद दुर्लभ हो चुका है। जिस प्रकार भारत के अन्य राज्य जैसे पंजाबी, गुजराती, साउथ इंडियन और अन्य प्रदेशो का खाना वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय है, वही उसके मुकाबले दुनिया को सबसे अधिक ‘कुक’ देने वाले उत्तराखंडी राज्य में, आज पारंपरिक गढ़वाली भोजन ढूंढना बेहद मुश्किल काम है।
हालाँकि वर्तमान समय में कुछ जागरूक उत्तराखंडी नागरिक राज्य की लोक संस्कृति को सहेजने का प्रयास कर रहे है। इसी क्रम में कपिल डोभाल और उनकी पत्नी दीपिका डोभाल ने लुप्त हो रहे उत्तराखंड के पकवानों को नए तरीके से परोसने का प्रयास कर रहे है।
हरिद्वार रोड स्थित जोगीवाला में बने उनके रेस्टोरेंट ‘बूढ़ दादी’ में डोभाल दंपति गढ़वाली व्यंजनों को आज के दौर के हिसाब से तैयार कर हेल्थी स्ट्रीट फूड के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे है। गढ़वाली भोजन परोसने वाले रेस्टोरेंट ‘बूढ़ दादी’ का शुभारंभ विधायक उमेश शर्मा काऊ और आंदोलनकारी सुशीला बलूनी द्वारा किया गया।
‘बूढ़ दादी’ गढ़वाली फ़ास्ट फ़ूड रेस्टोरेंट के मेन्यू में करकरा पैतुड़, ल्याटू, पटुड़ी, ढुंगला, ढिंढका, गिंवली, जवलि, चुनालि, घींजा, सिडकु, बेडु रोटी, सोना आलू, द्युडा, बदलपुर की बिरंजी, बडील, ल्याटू, टपटपि चा, पिट्ठलू, चर्चरी-बर्बरी चटनी, बारहनाजा खाजा, घुमका व मुंगरेडी आदि अन्य व्यंजनों को शामिल किया गया है।
हरिद्वार रोड जोगीवाला में गोविंद होस्पिटल के निकट स्थित गढ़वाली स्ट्रीट फूड जंक्शन “बूढ़ दादी” में शुद्ध ऑर्गेनिक उत्पाद से निर्मित उत्तराखंडी पकवान परोसे जाएंगे। गढ़वाली स्ट्रीट फूड जंक्शन के शुभारम्भ के मौके पर मौजूद राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी ने कहा, कि इस अभिनव पहल से राज्य के पर्वतीय अन्न उत्पादकों में पारंपरिक कृषि की ओर रुझान बढ़ेगा।