भिलंगना और भागीरथी नदी के संगम पर बसे प्राचीन टिहरी नगर ने भले ही बांध निर्माण परियोजना की खातिर करीब दो दशक पूर्व जल समाधी ले ली थी। लेकिन आज भी टिहरी नगर की समृद्ध संस्कृति और परंपरा पुराने नगरवासियो के ह्रदय में जीवित है।
प्रकृति और विकास के संतुलन की कीमत क्या होती है? इसका उत्तर शायद पुरानी टिहरी नगर में रहने वालो से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता है। पुरानी टिहरी के स्थापना दिवस पर बल्लूपुर स्थित वनस्थली में ओल्ड टिहरी सिटी के मॉडल को देखने के लिये दूर – दूर से विस्थापित लोग यहाँ आते है, और अपनी जन्मभूमि से जुड़ी कभी ना मिटने वाली पुरानी यादों में खो जाते है।
बीते मंगलवार को वनस्थली में पुरानी टिहरी के स्थापना दिवस कार्यक्रम में टिहरी शहर के मॉडल पर दिये प्रज्जवलित करते समय आगंतुक पुरानी टिहरी नगर को यादकर भावुक हो गए। टिहरी नगर के समान निर्मित इस अनुकृति में राजा का महल, पुराना दरबार, टिहरी बाजार, प्रदर्शनी मैदान, पीआईसी कॉलेज , बस अड्डा और घंटाघर समेत अन्य कई प्रमुख इमारतों का सूक्ष्म चित्रण किया गया है।
राजधानी देहरादून में अपने निवास के निकट पुरानी टिहरी के मॉडल को बनाने वाले सुबोध बहुगुणा ने कहा, कि अपनी जन्मभूमि को भला कोई कैसे भूल सकता है। उन्होंने कहा, कि भावी पीढ़िया टिहरी नगर की ऐतिहासिक परंपरा और संस्कृति को सदैव याद रखें, इसी उद्देश्य की कामना के लिए टिहरी नगर के मॉडल को बनाया गया है।
विशाल झील के बन जाने के बाद जल समाधी लेने वाले टिहरी नगर के निवासी और सामाजिक कार्यकर्त्ता अभिनव थापर ने इस अवसर पर कहा, कि भले ही प्राचीन संस्कृति, सभ्यता और परंपरा को संजोये टिहरी नगर झील में डूब गया है, लेकिन आज भी उत्तराखंड की संस्कृति में विशिष्ट स्थान रखने वाली टिहरी नगर की परंपरा को याद कर प्रत्येक वर्ष टिहरी स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाता है।