73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गीता प्रेस के अध्यक्ष रहे दिवंगत ‘राधेश्याम खेमका’ को पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है। राधेश्याम खेमका जी को यह पुरस्कार मरणोपरांत साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया जा रहा है। बिहार में जन्मे खेमका जी ने अपनी कर्मभूमि उत्तर प्रदेश के बनारस को चुना, उनके कार्यकाल में गीता प्रेस ने बहुत उन्नति की। खेमका जी का सम्पूर्ण जीवन गीता प्रेस को समर्पित किया था और वह लंबे समय तक सनातन धर्म की पत्रिका ‘कल्याण’ के संपादक रहे।
बनारस में संतो के सानिध्य में रहे
राधेश्याम खेमका के पिता श्री सीताराम खेमका बिहार राज्य के मुंगेर जनपद से उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर आए थे। बनारस में रहने के दौरान राधेश्याम खेमका जी कई महान संतों के संपर्क में आये, और निरन्तर उनके सानिध्य में रहे। राधेश्याम खेमका द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए एवं साहित्य रत्न की उपाधि प्राप्त की। खेमका जी द्वारा गीता प्रेस में अनेक धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का सफल संपादन किया।
आजीवन सात्विक जीवन का निर्वाहन किया
बेहद शांत और ईश्वरी प्रवृत्ति के राधेश्याम खेमका द्वारा आजीवन पत्तल में भोजन ग्रहण किया और कुल्हड़ में जल पिया। सम्पूर्ण जीवन चमड़े की वस्तुओं से परहेज करने वाले राधेश्याम द्वारा सदैव कपड़े के जूते पहने। दिवंगत खेमका जी को पद्म विभूषण पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद गीताप्रेस सहित पूरा बनारस खुशियाँ मना रहा है। राधेश्याम खेमका का जन्म 12 दिसंबर 1935 को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था,जबकि तीन अप्रैल 2021 के दिन खेमका जी ने काशी की भूमि पर देह त्याग दी थी।
करोड़ों धार्मिक पुस्तकों का सफल प्रकाशन
उल्लेखनीय है, कि गीताप्रेस में धार्मिक अनुष्ठानों और संस्कारों से संबंधित पुस्तकों का प्रकाशन राधेश्याम खेमका जी के सुझाव पर ही आरंभ हुआ था। एक अनुमान के अनुसार, गीता प्रेस की स्थापना के बाद से वर्तमान समय तक लगभग 72 करोड़ से अधिक सनातन धर्म से सम्बंधित पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी है। इन पुस्तकों में सर्वाधिक संख्या श्रीमद्भगवत गीता प्रकशित की गई है। इसके अतिरिक्त रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, दुर्गा, सप्तशती, सुंदरकांड और पुराण भी करोड़ो की संख्या में छपे है।
#republicday2022 Former President of #GitaPress, Sh Radheyshyam Khemka has been conferred with #PadmaVibhushan posthumously.
He dedicated his entire life to the cause of #SanatanaDharma & was editor of Kalyan Magazine for 4 decades.
2023 is centenary year of #GitaPress. pic.twitter.com/g7yhJM2GM8— Ramanathan B (@ramanathan_b) January 26, 2022