रूस-यूक्रेन के बीच पिछले बीस दिनों से जारी युद्ध में जिस प्रकार यूक्रेन ने दुनिया की महाशक्ति रूस को ‘नाको चने चबवा’ दिए है, उसे देखकर लगता है, कि अब विस्तारवादी नीती के समर्थक चीन की रूस के हालत देखकर अक्ल ठिकाने आ गई है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चीन अब अपने शक्तिशाली पड़ोसी भारत से भिड़ने के बजाय लगातार नरमी भरे संकेत भेज रहा है। उसकी ये नरमी चीन के विश्वविद्यालय में विदेश नीती पर शोध करने वाले विशेषज्ञों की बातों में भी नजर आ रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन की छिंगहुआ विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय नीति निर्माण शोध संस्थान के निदेशक छ्येन फंग ने सीमा विवाद पर भारत सरकार के रुख की प्रशंसा की है। विश्वविद्यालय के निदेशक ने कहा, कि पंद्रह दौर की बातचीत के दौरान दोनों पक्ष कदम-कदम पर एक दूसरे के प्रति भरोसा कयाम कर रहे है। उन्होंने कहा, कि सीमा के पश्चिमी सेक्टर में दोनों देशों के हजारों सैनिक आमने-सामने है, ऐसे में युद्ध को टालने के लिए दोनों पक्ष अधिक परिपक्वता और संयम बरत रहे है।
छिंगहुआ विश्वविद्यालय के डायरेक्टर छ्येन फंग ने कहा, कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पेट्रोलिंग इलाके की पहचान के विषय में दोनों पक्षों के बीच मतभेद मौजूद जरूर है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है, कि दोनों पक्ष एक समुचित समाधान नहीं खोज सकते है। उन्होंने कहा, कि दोनों राष्ट्र लंबे वक्त से क्षेत्रीय शांति को कायम रखने में सफल रहे है। इससे पूर्व भी दोनों पक्षों ने संयम बरतते हुए सेना के आमने-सामने होने के बाबजूद घटना का समुचित समाधान किया था।
उल्लेखनीय है, कि बीते 11 मार्च को भारत और चीन के बीच मोल्डो-चुशुल पॉइंट पर 15वें दौर की कोर कमांडर स्तरीय बातचीत संपन्न हुई थी। इस बातचीत में भी सैन्य तनाव कम करने के लिए कोई नतीजा सामने नहीं आने के बावजूद भारत ने सैद्धांतिक समानताओं पर जोर देते हुए पूर्वी लद्दाख के मुद्दे पर अधिक व्यवहारिक रुख अपनाया है। इससे ये साबित होता है, कि भारत शांतिपूर्ण तरीके से आपसी मतभेद सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।