बीते मंगलवार (23 मार्च) को अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री मेडलीन आलब्राइट का 84 साल की उम्र में कैंसर के कारण निधन हो गया। राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1996 में अलब्राइट को विदेश मंत्री बनाया था और उन्होंने क्लिंटन प्रशासन के अंतिम चार वर्षों में इस पद पर सेवाएं दी थी। मेडलीन अमेरिकी विदेश मंत्रालय संभालने वाली पहली महिला थी। उनके विदेश मंत्री रहते पुतिन से लेकर कोरियाई तानाशाह तक उनके आगे बोलने से कतराते थे, लेकिन पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने मेडलीन की एक नहीं चली।
उल्लेखनीय है, कि 1998 का साल हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक था। दरअसल भारत ने 1998 में एक परमाणु हथियार राष्ट्र के रूप में स्वयं को स्थापित किया और अपने चीन और पाकिस्तान के सामने अपनी रक्षा और बचाव पक्ष को मजबूत किया था। हालाँकि परमाणु राष्ट्र बनने के लिए भारत को सीधे अमेरिका से भिड़ना पड़ा था। यूएस के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन प्रशासन ने भारत के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए थे।
उस वक्त भारत को अमेरिकी और वैश्विक सहायता से वंचित कर दिया गया और वैश्विक वित्तीय संस्थानों द्वारा उधार लेने के लिए भारत को प्रतिबंधित कर दिया गया था। और इस प्रकार के कठोर प्रतिबंध लगाने वाली महिला कोई और नहीं, बल्कि तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री मेडलीन अलब्राइट थी। उस समय मेडलीन ने भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों को “भविष्य के खिलाफ एक अपराध” के रूप में प्रचारित किया था। मेडलीन के विदेश मंत्री रहते हुए ही 1998 में भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था, और इस परीक्षण के बाद अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश खुलकर भारत के विरोध में खड़े हो गए थे।
दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को झुकाने वाली पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री मेडलीन अलब्राइट का रिश्ता भारत के साथ तनाव भरा रहा था। पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद मेडलीन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को झुकाने का भरकस प्रयास किया, लेकिन उन्हें अपने इस प्रयास में सफलता नहीं मिल सकी। मेडलीन ने पूरी कोशिश की, कि अटल जी परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर कर दें, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद अटल जी अपने फैसले पर ‘अटल’ रहे। इस कारण मेडलीन भारत से खफा हो गईं थी। इसके बाद वो कश्मीर के मुद्दे पर अक्सर भारत को घेरने की कोशिश करती रही, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी एक नहीं चलने दी।
उल्लेखनीय है, कि विदेश मंत्री रहते हुए मेडलीन अलब्राइट ने उत्तर कोरियाई तानाशाह को परमाणु परिक्षण नहीं करने के लिए दबाब डाला था। मेडलीन ने क्यूबा समेत सभी पूर्व एवं तत्कालीन कम्युनिस्ट देशों के प्रति कठोर रवैया अपनाया था। इसके अलावा चेचन्या में रूस की गतिविधियों का उन्होंने इस प्रकार विरोध किया था, जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो गई थी। उन्होंने व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के वक्त ‘बुरा मत देखो-बुरा मत बोलो-बुरा मत सुनो’ का संदेश देने वाला ब्रोच पहन रखा था।
प्राग (तत्कालिन चेकोस्लावाकिया) की मूल निवासी मेडेलीन अलब्राइट 1948 में 11 वर्षीय शरणार्थी के रूप में अमेरिका आईं थी। मेडलीन आलब्राइट का जन्म 1937 में चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में हुआ था। चेकोस्लोवाकिया पर नाजियों के कब्जे के बाद उनके परिवार को देश छोड़ना पड़ा था। उनका परिवार कई देशों में भटकता हुआ 1948 में अमेरिका पहुंचा और हमेशा के लिए यहीं बस गया।