पंजाब के बाद अब कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में भी सत्ता परिवर्तन की लहर दिखने लगी है। जिस तरह पंजाब में कैप्टन सरकार के शासन काल के दौरान एक गुट ने अफसरशाही की मनमानी का मुद्दा उठाते हुए नेतृत्व परिवर्तन के लिए मोर्चा खोला था, ठीक उसी तरह से राजस्थान में भी राजनितिक खेल शुरू हो गया है। राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों और नेताओं ने गहलोत सरकार में ब्यूरोक्रेसी के हावी होने का मुद्दा दिल्ली तक पहुंचा दिया है। इसी बीच गहलोत के एक मंत्री ने इस्तीफा तक देने का ऐलान कर दिया है। इन हालातो में गहलोत सरकार पर उठती चिंगारियों हवा मिल गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान की कांग्रेस सरकार में भारी उथल-पुथल मची हुई है। सीएम अशोक गहलोत के मंत्री अशोक चांदना आजकल अपनी ही सरकार से खासे नाराज है, और इस्तीफे की धमकी दे रहे है। मंत्री चांदना मुख्य सचिव कुलदीप रांका से खफा बताये जा रहे है, और इस संबंध में ट्वीट करते हुए प्रदेश एवं युवा मामलों के मंत्री अशोक चांदना ने लिखा, माननीय मुख्यमंत्री जी मेरा आपसे व्यक्तिगत अनुरोध है, कि मुझे इस ज़लालत भरे मंत्री पद से मुक्त कर मेरे सभी विभागों का चार्ज श्री कुलदीप रांका जी को दे दिया जाए, क्योंकि वैसे भी वो ही सभी विभागों के मंत्री है।
माननीय मुख्यमंत्री जी मेरा आपसे व्यक्तिगत अनुरोध है की मुझे इस ज़लालत भरे मंत्री पद से मुक्त कर मेरे सभी विभागों का चार्ज श्री कुलदीप रांका जी को दे दिया जाए, क्योंकि वैसे भी वो ही सभी विभागों के मंत्री है।
धन्यवाद— Ashok Chandna (@AshokChandnaINC) May 26, 2022
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले दिनों खेल विभाग और स्पोर्ट्स काउंसिल की एक बैठक में कुछ अहम फैसले लिए गए, और इन फैसलों को लेते वक्त संबंधित विभाग के मंत्री चांदना को पूछा तक नहीं गया। खेल मंत्री को नजरअंदाज किये जाने के चलते मंत्री चांदना बेहद नाराज हो गए। उसके बाद जब इस पुरे प्रकरण में मुख्य सचिव कुलदीप रांका का नाम सामने आया, तो मंत्री महोदय ने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए, पूरे विभाग को ही मुख्य सचिव को सौंपने की राय देते हुए त्यागपत्र की पेशकश कर दी।
बताया जा रहा है, राजस्थान की गहलोत सरकार में नौकरशाही के हावी होने के चलते कई विधायक पहले ही अपनी नाराजगी जता चुके है। विधायक गणेश घोघरा, राजेंद्र बिधूड़ी, धीरज गुर्जर और मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा तक सरकार में नौकरशाही को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर चुके है। नेताओं के ब्यूरोक्रेसी पर मनमानी के आरोपों से उठे विवाद को समाप्त करने के लिए मुख्य सचिव ने पिछले दिनों एक सर्कुलर भी जारी किया था। इस सर्कुलर में अफसरों को विधायकों-जनप्रतिनिधियों का सम्मान करने, उनके मुद्दों की सुनवाई करने के आदेश जारी किये गए थे। हालाँकि इसके बाद भी हालात नहीं बदले और अब मामला दिल्ली हाईकमान तक पहुंच गया है।
उल्लेखनीय है, कि पहले भी पंजाब में कांग्रेस के एक गुट ने कैप्टन सरकार के दौरान अफसशाही के हावी होने का विषय उठाया था और धीरे-धीरे प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक बदलने के लिए खुला मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद आनन-फानन में कांग्रेस ने कैप्टन को सीएम की कुर्सी से बेदखल कर चरणजीत सिहं चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था। इस सबके बाद भी पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई, और चन्नी के खिलाफ भी कांग्रेस का एक धड़ा अपनी आवाज बुलंद करता रहा। इसका खामियाजा कांग्रेस को विधानसभ चुनाव 2022 में सत्ता गंवाकर चुकाना पड़ा। अब वर्तमान में भी राजस्थान की राजनीतिक स्थिति ऐसी ही बनती नजर आ रही है।