नागराजा देवता जैसे नाम से ही विदित होता है, कि यह सर्प शेषनाग के परिवार से संबंधित है। यह गढ़वाल के प्रसिद्ध देवता हैं। भगवान विष्णु या कृष्ण के रूप में इनकी गढ़वाल क्षेत्र में सभी जगह मान्यता है। नागराजा देवता को भगवान बद्रीनाथ जी का भी प्रतीक माना गया है।
नागराजा देवता का मंदिर टिहरी जिले के सेम-मुखेम गांव में स्थित है। मंदिर स्थापना के विषय में कोई स्पष्ट तथ्य नहीं है परंतु प्राचीन किदवंतियों के अनुसार यहाँ नागराज देवता जी का प्रादुर्भाव बड़े चमत्कारिक रूप से हुआ। यहां एक सर्प प्रकट हुए जिससे यहां की स्थानीय जनता को भय उत्पन्न हो गया। अतः आकाशवाणी हुई, कि आप लोग भय ना करें यहां मैं हूं और ये सर्प मेरे ही परिवार के लोग है।
इसके बाद स्वयं नागराज देवता किसी के सिर पर बैठ कर आये और स्वयं अपना परिचय दिया। तभी से उस स्थान की मान्यता है। कई लोगों का मानना है, कि यहां इस भूमि के भीतर अकूत धन संपदा गड़ी हुई है। जिसकी रक्षा स्वयं नागराज भगवान करते हैं। यदि कोई इस धन को प्राप्त करना चाहता है तो उसे किसी अपने प्रियजन की मनुष्य बलि देनी होगी।
धन के लालच में इतना बड़ा पाप किसी ने भी नहीं किया। नागराज देवता के कीर्तन में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। नागों के कारण यह पूरा इलाका टिहरी गढ़वाल में प्रसिद्ध है। यहां की यात्रा और पूजा से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। डोभाल ब्राह्मणों का यह इष्ट देवता है। ऐसा कहा जाता है, कि डोभालो को सर्प के काटने का विष नहीं लगता और यह अनुभूत सत्य है।