प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार ब्रिटिश काल में बनाए गए कानूनों में समय की मांग को देखते हुए जरुरी संशोधन कर रही है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार (11 अगस्त 2023) को संसद में तीन विधेयक पेश किए। सरकार ने राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने सदन में भारतीय न्याय संहिता बिल, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बिल पेश किये।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जानकारी दी, कि अंग्रेजों के बनाए कानूनों को समाप्त किया जा रहा है, अब इनके तहत सजा नहीं बल्कि न्याय देने का काम किया जाएगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया है, कि राजद्रोह कानून को खत्म किया जा रहा है, इसे लेकर सरकार की तरफ से एक प्रस्ताव पेश किया गया। पिछले कई दशकों से चले आ रहे इस कानून को लेकर काफी विवाद भी हुआ था, कई विपक्षी दलों ने इसे खत्म करने की मांग की थी और इसके दुरुपयोग का आरोप लगाया था।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा, कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध एवं सामाजिक समस्याओं के मद्देनजर भी कानून बनाया गया है। विवाह, रोजगार, पदोन्नति के लिए असत्य वचन और गलत पहचान बताकर शारीरिक संबंध बनाने के मामले पर भी फोकस किया गया है। उन्होंने कहा, कि इस विधेयक में सामूहिक दुष्कर्म के सभी मामलों में 20 साल की सजा अथवा आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।
भारतीय न्याय संहिता बिल, भारतीय साक्ष्य बिल और भारतीय नागरिक सुरक्षा बिल में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ अपराध करने वालों के लिए दंड को और अधिक कठोर करने के प्रावधान किए गए हैं। pic.twitter.com/KS17DBymoS
— Amit Shah (@AmitShah) August 11, 2023
अमित शाह ने कहा, कि अपराधी जो देश छोड़कर फरार हो जाते थे, उनके खिलाफ दस वर्ष की सजा का प्रावधान लाया गया है। सजा माफी को ढाल बनाकर राजनीतिक लाभ लेने वाले बहुत किस्से आते थे, अब हमने कह दिया है, कि अगर किसी को सजा माफ करनी है, तो मृत्यु की सजा को आजीवन कारावास और आजीवन कारावास की सजा को 7 साल तक ही माफ कर सकते है। 7 साल के कारावास को 3 साल ही माफ कर सकते है, अभी बिहार में कुछ मामले सामने आए हैं, किसी प्रकार से राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों को छोड़ा नहीं जाएगा, उनको भी दंड भुगतना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है, कि राजद्रोह कानून सदैव विवादों में रहा है, विपक्षी दल सत्ताधारी पार्टी पर इसके दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे है। केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की व्याख्या भी की थी। अदालत ने कहा था, कि इसे कानून व्यवस्था की गड़बड़ी या फिर हिंसा के लिए उकसाने तक ही सीमित होना चाहिए।