बागपत स्थित बरनावा गांव के लाक्षागृह स्थित प्राचीन टीले को लेकर कोर्ट ने आखिरकार 53 साल बाद अपना निर्णय सुना दिया है। कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला हिंदुओं के पक्ष में सुनाया है। निर्णय आने के बाद श्री महानंद संस्कृत विद्यालय गुरुकुल परिसर में मंगलवार सुबह आचार्यों व छात्रों ने वेद मंत्रों के साथ यज्ञ किया। न्यायालय के फैसले पर हिंदू पक्ष ने खुशी व्यक्त की है। उन्होंने इसको हिंदुओं की आस्था की जीत बताया। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने जिला न्यायालय में अपील करने की बात कही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टीला लाक्षागृह को शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान बताने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका बीते सोमवार को न्यायालय में खारिज कर दी थी। जिसके बाद पुलिस ने पूरी सतर्कता दिखाई और कई थानों की पुलिस लाक्षागृह पहुंच गई। जिसके बाद शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए सीओ हरीश भदौरिया ने पुलिस बल के साथ मिलकर फ्लैग मार्च किया। इसके अलावा न्यायालय में भी सुरक्षा बढ़ा दी गई और वहां पुलिस बल मौजूद रहा।
बागपत में लाक्षागृह की बढ़ाई गई सुरक्षा… मालिकाना हक हिंदुओं को मिलने के बाद प्रशासन अलर्ट, कई थानों की फोर्स सुरक्षा में तैनात की गई.#Lakshagrah #Bagpat pic.twitter.com/m27DH8XTDl
— News18 Uttar Pradesh (@News18UP) February 6, 2024
प्राप्त जानकारी के अनुसार, महाभारत में जिस लाक्षागृह का उल्लेख है, वो लाक्षागृह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित है। ये वही लाक्षागृह है, जिसे दुर्योधन ने पाण्डवों को मारने के लिए एक षड्यंत्र के तहत बनवाया था। अब मुस्लिम पक्ष साल 1970 से ये दावा कर रहा है, कि जिस टीले पर लाक्षागृह का होना बताया जाता है, वहाँ बदरुद्दीन की मजार है। कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर पूरी जमीन और मजार हिंदुओं को सौंप दी।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता रणवीर सिंह ने जानकारी दी, कि मुस्लिम पक्ष 100 बीघा भूमि को कब्रिस्तान और मजार बताकर उस पर कब्जा करना चाह रहा था। उसको लेकर उन्होंने कोर्ट के समाने सारे सबूत पेश किए थे। उन्होंने कोर्ट बताया था, कि लाक्षागृह का इतिहास महाभारत के युग का है। इस टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारत कालीन सुराग भी मौजूद है।
यह मामला बागपत के एडीजे की कोर्ट में चल रहा था। बागपत के बरनावा में लाक्षागृह टीले की पहचान हुई है। साल 1953 में खुदाई के दौरान यहाँ पर लगभग 4500 साल पुराने पुरातात्विक महत्व के सामान भी मिले थे। अब इस स्थान की पहचान दुर्योधन द्वारा बनाए गए लाक्षागृह से होती है। यह जगह अब भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन है।