भारत सदैव कृषि प्रधान देश रहा है। वैदिक काल से ही कृषि के लिए पशुधन की उन्नति परम आवश्यक मानी जाती है। इसी वजह से भारतीय कृषि के लिए सबसे उत्तम एवं उपयोगी पशु गाय ही है। गाय के गोबर से किसान की फसल की उन्नति करती है। और बैल को जन्म देकर गाय माता कृषि उत्पादन में सहायता प्रदान करती है। गाय का शुद्ध दूध पिलाकर मनुष्यो का पालन पोषण भी करती है। इन्ही गुणों के चलते गाय पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति में प्रमुख स्थान रखती है।
भारतीय हिन्दू समाज प्राचीन काल से ही गाय माता मानते आये है। हमारे पूर्वज आर्यों का साथ सबसे पहले गाय माता ने ही दिया था। प्राचीन काल में जब हमारे पूर्वज आर्यो का कबीला एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता था। तो वे सदैव गायों को साथ ले जाते थे।
अथर्ववेद में गाय के बारे में वर्णन है ….
“मया गावो गो पति ना सवध्वमयं गो गोष्ठ इह
पोषयिष्णु रायस्योषेण बहुला भवन्ती जिर्रवाजीवन्ती रुपनः सदेम।”
अर्थात हे गायों तुम मुझ गोपालक से मिलकर रहो। यह मेरी गौशाला तुम्हारा पालन पोषण करने वाली हो। तुम धनधाम पोषक पदार्थ तथा जीवनदान देने वाली हो। तुमको हम सब प्राणी प्राप्त करें। इस श्लोक से यह ज्ञात होता है, कि गायों की महानता व उपयोगिता वैदिक काल में प्रमुख मानी जाती थी।
ऋग्वेद में यह भी कहा गया है …
“गोस्तुमात्रा ना विद्यते “
अर्थात गाय द्वारा मिलने वाले लाभों की गणना नहीं हो सकती है
अथर्ववेद में गाय माता की महिमा का वर्णन करता श्लोक है …
“यूयं गावो मेदयथा कृशं
चीदश्रीरंचित कृणुथा सुप्रतीकमः”
अर्थात गाय का दूध मनुष्य के शरीर को बलिष्ठ बनता है। और मोटापे को कम करने में मदद करता है। गाय विश्वधाय है, वह हमारी सन्तानो को शुद्ध दूध पिलाकर पोषण करती है। उपरोक्त वजहों से ही हम सदा उसकी पूजा करते हैं। बिना गाय के मनुष्य एक क्षण ही निर्वाह नहीं कर सकते है। मनुष्य बिना गाय के यदि रहना भी चाहे, तो उसका जीवन अल्प आयु होगा। सब जंतुओं में सर्वाधिक सत्व प्रधान गांव ही है। वह मानव समाज की जननी है। हमारा कल्याण इसी में है, कि जितना हो सके हम गाय माता की पूजा और सेवा करें।