महान आचार्य चाणक्य एक प्रसिद्ध विद्वान थे। चाणक्य राजसी भोग विलास से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। आचार्य चाणक्य ने सदैव मर्यादाओं का पालन किया और कर्मठता के साथ जिंदगी बितायी। एक बार आचार्य चाणक्य से मिलने उनके एक परिचित आये और उनसे वार्ता करने लगे और बातों ही बातों में आचार्य चाणक्य से कहने लगे:-
“आपको पता है, कि नगर के नागरिक आपके मित्र के बारे में क्या बात कर रहे है” आचार्य चाणक्य मुस्कराये और परिचित को उदाहरण देकर समझाने लगे और बोले “आप एक क्षण रुके,आप जो भी मुझे मेरे मित्र के बारे में बताना चाह रहे है, उसके पहले मैं यह तीन छन्नी परीक्षण करना चाहता हूँ।”
परिचित ने उत्सुकता से पूछा, ये “तीन छन्नी परीक्षण” का सिद्धांत क्या है ?
आचार्य चाणक्य ने कहा – इस तीन छन्नी परीक्षण का अभिप्राय है, कि “जो भी बात आप मुझसे पूछेंगे उसे इन तीन छन्नीयो से गुजारने के बाद ही कहें।”
पहली छन्नी है “सत्य “
“क्या आप यह विश्वासपूर्वक कह सकते हैं, कि जो बात आप मुझसे कहने जा रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है” ?
परिचित ने उत्तर दिया – “जी बिल्कुल नहीं दरअसल यह बात मैंने अभी-अभी यहाँ आने से पहले ही सुनी है”।
चाणक्य बोले – तो इसका अर्थ यह है, कि इस बारे में अभी आपको भी ठीक से कुछ नहीं जानकारी नहीं है।
दूसरी छन्नी है “भलाई “
आचार्य चाणक्य ने कहा – “क्या आप जो बात मुझसे मेरे मित्र के सम्बन्ध में बताने जा रहे यह कोई अच्छी खबर है”
परिचित ने कहा जी नहीं “मैंने जो भी आपके मित्र के बारे में सुना है वह बिल्कुल भी सकारात्मक बात नहीं है बल्कि मैं तो……
इस पर आचार्य चाणक्य ने अपने परिचित से कहा की “इसका मतलब ये है, कि आप मुझे कोई अनिष्ट बात बताने जा रहे थे, लेकिन आपको भी यह जानकारी नहीं है, कि इस बात में कितनी सचाई है या नहीं।
अंतिम परीक्षण में तीसरी छन्नी है “उपयोगिता “
आचार्य चाणक्य ने कहा, कि क्या जो बात आप मुझे बताने जा रहे हो, वह क्या मेरे लिए उपयोगी सिद्ध होगी।” परिचित ने आचार्य से कहा “आचार्य जी मुझे इसकी संभावना कम ही लग रही है, कि यह बात आपके के लिए उपयोगी सिद्ध होगी”
यह सुनकर चाणक्य ने परिचित को कहा-
“इसका तो यह अर्थ निकलता है, कि जो बात आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताने जा रहे थे, वह ना तो वह सत्य है, ना ही कोई सुखद खबर है और ना ही यह बात मेरे लिए उपयोगी सिद्ध होगी। तो फिर इस प्रकार की बात कहने का क्या औचित्य ?
कथा का सार
“जब कभी भी आप के अपने शुभचिंतको मित्र और परिचित के बारे में कुछ गलत बात सुने, तो उस बात की उपयोगिता को इस सिद्धांत की कसौटी पर परख ले और बिना सत्यता जाने किसी बात पर तुरंत यकीन ना करे।”