कहते है, कि उम्र तो बस एक संख्या है, और इस बात को सत्य सिद्ध कर रही है, 93 वर्षीय भौतिकी की प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा, जो बढ़ती आयु और उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दरकिनार कर छात्रों को भौतिक विज्ञान की दुनिया में जाने के लिए रोजाना 60 किलोमीटर से अधिक की यात्रा करती है। प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा के बारे में कहा जाता है, कि भौतिक विज्ञान उनका जुनून है, और शिक्षण कार्य उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य।
ऑपइंडिया कि रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश की निवासी प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा की उम्र 93 साल की हैं। उम्र के जिस पड़ाव में सामान्यतः लोग आराम से जिंदगी बिताने के बारे में सोचते है, वह छात्रों को पढ़ाने के लिए 60 किमी से अधिक की यात्रा प्रतिदिन करती है। घुटने की शल्य चिकित्सा के बाद भी चिलुकुरी संथम्मा ने कॉलेज के छात्र – छात्राओं को पढ़ाना नहीं छोड़ा है। प्रोफेसर संथम्मा प्रतिदिन बैसाखी के सहारे पिछले छह वर्षों से फेलोशिप लेकर सेंचुरियन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने आती है। इसके साथ ही वह सात दशकों से यूनिवर्सिटी के बच्चो को फिजिक्स पढ़ाकर उन्हें विज्ञान के क्षेत्र मेंआगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।
चिलुकुरी संथम्मा का जन्म 8 मार्च, 1929 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ था। महज पांच महीने की उम्र में संथम्मा ने पिता को खो दिया था। इसके बाद उसका पालन-पोषण उसके मामा ने किया था। वर्ष 1945 में विशाखापत्तनम के AVN कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढाई के दौरान उन्हें मद्रास राज्य के महाराजा विक्रम देव वर्मा से भौतिकी के लिए स्वर्ण पदक मिला। उन्होंने भौतिक विज्ञान में बीएससी ऑनर्स किया और आंध्र विश्वविद्यालय से माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी में डी.एससी (पीएचडी के समकक्ष) की उपाधि ली। इसके बाद वर्ष 1956 में आंध्र विश्वविद्यालय में बतौर लेक्चरर अध्यापन कार्य शुरू किया।
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1989 में सेवानिवृत होने के बाद भी वह शोध कार्य से जुड़ी रही और एक मानद लेक्चरर के रूप में फिर से आंध्र विश्वविद्यालय को जॉइन किया। उन्होंने भौतिकी विज्ञान से जुड़े सम्मेलनों में भाग लेने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और स्पेन सहित कई देशों का दौरा किया। प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा को परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी और आणविक स्पेक्ट्रोस्कोपी में उनके शोध कार्यो के लिए 2016 में वेटेरन वैज्ञानिकों की श्रेणी में कई पुरस्कारो और स्वर्ण पदक से नवाजा गया।
प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा को वैदिक गणित, पुराणों, वेदों और उपनिषदों में भी बेहद रुचि है। उन्होंने भगवद गीता के श्लोकों का अंग्रेजी संस्करण “भगवद गीता – द डिवाइन डायरेक्टिव” नामक एक पुस्तक भी लिखी है। उनके पति चिलुकुरी सुब्रह्मण्य शास्त्री का कुछ वर्षो पहले देहांत हो चुका है। उन्होंने कहा, कि उनके पति एक तेलुगु प्रोफेसर थे और उन्होंने ही उन्हें उपनिषदों से परिचित कराया, और मैं उन विषयों पर शीघ्र ही एक पुस्तक जारी करने के लिए उपनिषदों का अध्ययन कर रही हूँ, जो भविष्य में युवा पीढ़ी के लिए बेहद उपयोगी हो सकती है।