चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग G-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत नहीं आ रहे है। चीन के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को इसकी पुष्टि करते हुए अपने एक बयान में कहा है, कि उनके स्थान पर चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग G-20 बैठक में हिस्सा लेंगे। विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा, कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के G-20 नेताओं की बैठक में शामिल नहीं होने से शिखर सम्मेलन के नतीजे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वहीं वैश्विक घटनाक्रमों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है, कि G-20 से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नदारद रहना साधारण बात नहीं है। चीन के इस कदम का उद्देश्य सिर्फ भारत को ठेस पहुंचाना भर नहीं है, बल्कि शी जिनपिंग वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार नहीं करना चाहते है। चीन महाशक्ति के रूप में भारत के दबदबे से बेहद विचलित है। बता दें, भारत की ग्रोथ रेट 7.8 फीसदी पर पहुंच गई है, जो दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के मुकाबले में सबसे तेज ग्रोथ रेट है।
गौरतलब है, कि G-20 की बीते कुछ महीनों में हुई महत्वपूर्ण बैठकों में चीन का तौर-तरीका सहयोगात्मक नहीं रहा है। जिन अहम मुद्दों पर सभी की सहमति जरूरी है, उससे जुड़े प्रस्तावों पर चीन के विरोध के चलते वे अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाए है। इसी प्रकार G-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन में भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। चीन किस हद तक इस आयोजन में बाधा पहुचाने का प्रयास कर रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि वह ‘वसुधैव कुटंबकम’ के इस्तेमाल पर भी अपनी आपत्ति दर्ज कर रहा है।
वहीं इस मसले पर विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा है, कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के G-20 नेताओं की बैठक में शामिल नहीं होने से शिखर सम्मेलन के नतीजे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विदेश राज्य मंत्री ने जिनपिंग और पुतिन की गैरमौजूदगी को अधिक महत्व न देते हुए कहा, कि शिखर सम्मेलन के अंतिम दिवस में जारी किया जाने वाला घोषणापत्र लगभग तैयार हो चुका है और यह देशों का विशेषाधिकार है, कि वे किसे भेजना चाहते है।
इसी बीच ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है, कि चीन दुनिया के सबसे बड़े जासूसी अभियानों में से एक को अंजाम दे रहा है। उसके इस अभियान का लक्ष्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की रक्षा और आर्थिक जानकारी को चुराना है। दरअसल, चीन को अब लग रहा है, कि उसके दुश्मन हर तरफ है। शिक्षण संस्थान हों या मल्टीनेशनल कंपनियाँ, वो हर किसी को संदेह की नजर से देख रहा है।
उल्लेखनीय है, कि चीन वर्तमान में अपने सबसे बुरे वक्त से गुजर रहा है। चीन का रियल स्टेट सेक्टर पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। उसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। उसकी विकास दर निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है और आंतरिक तौर पर चीनी नागरिकों का असंतोष भी चरम पर है। वहीं कुछ समय पहले अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के मुखिया ने एक बयान देकर चीन को सिर के बल खड़ा कर दिया था, जिसमें सीआईए चीफ ने कहा था, कि अमेरिका अब चीन में अपने जासूसी नेटवर्क को फिर से मजबूत कर रहा है।