कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों से लगभग स्पष्ट हो गया है, कांग्रेस पार्टी प्रचंड बहुमत प्राप्त कर सत्ता में वापसी कर रही है। विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को 135 सीटें मिलती हुई दिखाई दे रही है, वहीं भाजपा 65 और JDS 20 सीटों पर सिमटती हुई दिख रही है। वोट प्रतिशत की बात करे, तो कांग्रेस को 43.1%, भाजपा को 35.6% वोट मिले है, जबकि जेडीएस का वोट शेयर 13.3% रहा है।
चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार, कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति लोगो में उत्साह नजर आया और लोग उनके नाम पर वोट देने मतदान केंद्र में आते है। दरअसल भाजपा की हार के लिए कई स्थानीय कारण भी जिम्मेदार रहे। इस बार भाजपा जातिगत समीकरणों को साधने में नाकाम रही। चुनाव से पहले लिंगायत वोटबैंक पूरी तरह बिखर गया और इसकी वजह येदियुरप्पा की अचानक विदाई भी मानी जा रही है।
उल्लेखनीय है, कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 80 प्रतिशत मुस्लिम वोट कांग्रेस के खाते में गया। वहीं वोक्कालिगा समेत अन्य जातियों का समर्थन भी कांग्रेस को मिला। भाजपा ने इस चुनाव में समान नागरिक संहिता, एनआरसी, मंदिर प्रशासन को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने जैसे मुद्दों को उठाया था। माना जा रहा था, कि बीजेपी के ये मुद्दे हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए थे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया था।
निर्वाचन आयोग के आँकड़ों के अनुसार, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बाद भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी बनी है। वहीं, जनता दल सेक्युलर (JDS) तीसरे स्थान पर रही। वहीं दो सीटे जीतकर निर्दलीय उम्मीदवार चौथे स्थान पर है। जबकि एक-एक सीट के साथ कल्याण राज्य प्रगति पक्ष और सर्वोदय कर्नाटक पक्ष पाँचवें नंबर पर है। दक्षिण भारत का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में आम आदमी पार्टी (AAP) भी जहां अपना भाग्य अजमा रही थी वहीं वामपंथी दल भी अपनी भूमि तलाश रहे थे।
कर्नाटक चुनाव में अगर फायदे और नुकसान की बात की जाये तो मत प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग 5 प्रतिशत बढ़ा है, वहीं जेडीएस को 5 प्रतिशत का नुकसान झेलना पड़ा है। इस चुनाव में जेडीएस को जितना नुकसान उठाना पड़ा है, उतना ही कांग्रेस पार्टी को लाभ पंहुचा है। वहीं भाजपा के वोट शेयर में एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जिससे इसे सत्ता विरोधी लहर नहीं कहा जा सकता है।
यदि 2018 कर्नाटक विधानसभा की बात की जाए, तो उस चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक 104 सीटें मिली थी, जबकि दूसरे स्थान पर कांग्रेस को 80 सीटें मिली थी। वहीं जेडीएस के 37 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कर किंग मेकर की भूमिका निभाई थी। इस प्रकार इस बार भाजपा को 39 सीटों का और JDS को 17 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। पांच वर्ष पहले हुए चुनाव में भाजपा को 36.22 प्रतिशत, कांग्रेस को 38.04 प्रतिशत और जेडीएस को 18.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
उल्लेखनीय है, कि भले ही कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत के अति-उत्साह में पार्टी समर्थक ये दावा कर रहे हों, कि 2024 के लोकसभा चुनाव पर कर्नाटक चुनाव परिणामों का असर पड़ेगा, लेकिन इतिहास की घटनाओं को देखकर ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। पहले भी कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बदतर ही रहा था।