दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में कहा है, कि विदेशी नागरिकों को भारत में रहने और बसने का अधिकार नहीं है। दरअसल यह फैसला एक याचिका पर सुनवाई के बाद आया है, जिसमें एक विदेशी नागरिक ने भारत में रहने और बसने के अधिकार का दावा किया था। हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा, कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और वह अपने नागरिकों और अन्य लोगों को देश में रहने और बसने के अधिकार देने के लिए स्वतंत्र है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा, कि विदेशियों या संदिग्ध विदेशी के मौलिक अधिकार केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घोषित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार तक ही सीमित हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने बांग्लादेशी नागरिक अजल चकमा के परिवार द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, अजल को अक्टूबर 2022 में दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पकड़ा गया था। उस पर यह आरोप लगाया गया था, कि उसने पहले बांग्लादेशी पासपोर्ट पर भारत की यात्रा की थी, लेकिन बाद में धोखाधड़ी से भारतीय दस्तावेज (पासपोर्ट सहित) प्राप्त कर लिए। हालाँकि, बाद में भारतीय अधिकारियों ने उसके पासपोर्ट को रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में यह तर्क प्रस्तुत किया था, कि संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सभी नागरिकों को दिया गया है, जिसमें विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। हालाँकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज करते हुए कहा, कि अनुच्छेद 21 में शामिल “सभी” शब्द का अर्थ केवल भारतीय नागरिक हैं। अदालत ने कहा, कि विदेशी नागरिक भारत में केवल वीजा के आधार पर रह सकते हैं और उनका वीजा किसी भी वक्त रद्द किया जा सकता है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा, कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ई) में निहित स्वतंत्रता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को लागू होता है। विदेशी नागरिकों को इस अधिकार का लाभ नहीं मिलता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने हंस मुलर ऑफ नूरेनबर्ग बनाम सुप्रीटेंडेंट, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1955 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था, कि ‘विदेशियों को निष्कासित करने की भारत सरकार की शक्ति पूर्ण और असीमित है और इसमें कोई कमी नहीं है’।
उच्च न्यायालय ने कहा, कि विदेशी नागरिक भारत में आने और रहने के लिए सरकार से अनुमति लेते हैं। यह अनुमति केवल एक निश्चित अवधि के लिए दी जाती है और इसे बाद में बढ़ाया जा सकता है या रद्द किया जा सकता है। उल्लेखनीय है, कि इस फैसले का भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है। यह फैसला यह स्पष्ट करता है, कि विदेशी नागरिकों को भारत में रहने और बसने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।