भारत में हो रहे तेजी से डिजिटल तकनीक के प्रसार ने जहाँ एक और आम जनमानस को सुविधाएं प्रदान की है,वही दूसरी ओर इसने लोगो की दुविधाएं भी बढ़ा दी है। डिजिटल पेमेंट के साथ -साथ आजकल डिजिटल कर्ज का चलन भी बढ़ गया है। डिजिटल कर्ज देने वाले ऐप के जरिये कर्ज की राशि का भुगतान करते है।
वर्तमान समय में देश में डिजिटल कर्ज की राशि छोटी होती है एवं यह कर्ज अल्प समय के लिए ही दिया जाता है। अमूमन यह राशि पांच से लेकर पचास हजार तक हो सकती है और इस धन पर पड़ने वाला सालाना ब्याज साठ से सौ प्रतिशत तक हो सकता है। इसके अलावा इस कर्ज के साथ रेगुलर बैंको की तुलना में भारी भरकम शर्ते भी जोड़ दी जाती है।
कई मामलो में ये देखा जा रहा है कि डिजिटल कर्ज लेने वाले व्यक्ति को इस प्रकार कि शर्तो को पूरा करने आसान नहीं होता है। और जो कर्ज चुकाने में असमर्थ रह जाते है, उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है और सामाजिक रूप से छवि ख़राब करने की धमकी दी जाती है। इसी सब के वजह से तेलंगाना राज्य में दो व्यक्तियों ने तंग आकर खुदखुशी कर ली थी।
दरअसल डिजिटल तकनीक के माधयम से कर्ज देने वाली गैर बैंकिंग कंपनिया बिना पंजीकरण के कार्य कर रही है। इसके अलावा ये कंपनिया न्यूनतम धन भुगतान की कर्ज योजना बनाकर कार्य कर रही है। यह बड़ी राशि के कर्ज देने के बजाय कम राशि का कर्ज मुहैया करवाती है।
इन्ही कम राशि के डिजिटल कर्ज के कुचक्र में पड़ कर कई लोगो को मानसिक आघात पहुंच चुका है। और उनकी सामाजिक रूप से बदनामी की गयी है। ऐसे में प्रशासन का ध्यान इस पर तब जाता है, जब कोई व्यक्ति इस डिजिटल कर्ज में फंस कर अपने जीवन को क्षति पंहुचा चुका होता है।
अतः अब डिजिटल कर्ज के इस प्रारूप को बढ़ावा दिए बगैर इन कंपनियों की मार्केटिंग नीतियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए एवं सरकार को इनके ऊपर एक निगरानी एवं सुरक्षा तंत्र भी विकसित करना चाहिए ताकि प्रलोभन में आकर कमजोर ग्राहक इनकी गिरफ्त में आने से बच सके।