खुशी इस बात है की सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म दिल बेचारा आखिरकार रिलीज हो गयी और दुःख इस बात का कि इसके बाद सुशांत की कोई और नई फिल्म हमें देखने को नहीं मिलेगी।
‘दिल बेचारा’ (Dil Bechara) फिल्म शुरूवात होती एक लाइन से ” एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए खत्म कहानी” और उसके बाद जैसे ही पांच मिनट बाद सुशांत सिंह राजपूत का पहला सीन आता है तो ये आपकी आखो को नम कर देता है और फिल्म के अंत तक आप इसमें खो जाते है।
सुशांत सिंह राजपूत के इस दुनिया से जाने के ठीक डेढ़ महीने बाद उनकी अंतिम फिल्म ‘दिल बेचारा’(Dil Bechara) 24 July को दर्शको के लिए O T T प्लेटफॉर्म्स डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज कर दिया गया है। सुशांत के फैन्स उनकी आखिरी फिल्म का बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे। सुशांत की यह फिल्म में भावुक कर देती है और फिल्म के कुछ सीन देखते हुए आप नम आखो के साथ मुस्कुरा भी रहे होंगे।
दिल बेचारा की कहानी
दिल बेचारा (Dil Bechara) एक संजीदा फिल्म है जिसमे भरपूर इमोशन जगाने की पूरी कोशिश की गई है।और फिल्म के निर्देशक मुकेश छाबरा इस कोशिश में कामयाब भी हुए है। सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) ने एक कैंसर के मरीज के रूप में सबको इमोशनल कर दिया और सुशांत का चुलबुला रूप सबके दिलों को छू जाता है।
दिल बेचारा’(Dil Bechara) फिल्म की कहानी की शुरुवात होती है किज्जी बासु (संजना सांघी) की आवाज से जो टर्मिनल कैंसर से जूझ रही हैं। कीजी हमेशा एक ऑक्सीजन सिलिंडर साथ में लेकर चलती है और उसकी जिंदगी अपनी मौत के इन्तजार में कट रही है। उसकी दुःख भरी लाइफ में एंट्री होती है, इम्मानुल राजकुमार जूनियर उर्फ मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) की जो काफी कूल है और हमेशा मस्ती करता रहता है और वो भी पहले कैंसर का मरीज था।
इसके बाद किज्जी की जिंदगी में भी बदलाव आने लगता है और उसे जैसे जीने की वजह मिल जाती है.किज्जी का एक अधूरा सपना है जो उसे पूरा करना है। उसे अपने एक पसंदीदा म्यूजिशियन अभिमन्यु वीर (सैफ अली खान) से मिलना है जिसने एक गाना अधूरा छोड़ा है और किज्जी उस गाने को पूरा करना चाहती है।
यहां मैनी जिद करके किज्जी के परिवार को मनाता है और उसे पेरिस लेकर जाता है जिससे मिलने वो इतनी दूर आते है वो उसके विपरीत एकदम बददिमाग निकलता है। दोनों उदास हो जाते है लेकिन इस पेरिस यात्रा की वजह से वो दोनों एक दूसरे के ज्यादा करीब होकर वापस भारत आ जाते हैं, लेकिन यहां से कहानी में एक मोड़ आता है। जहां अब तक किज्जी सीरियस हालत में नजर आ रही थी वहीं अब मैनी की तबियत ज्यादा बिगड़ जाती है।
कहानी में आगे जब एक रात अचानक सिनेमा हाल में बैठे मैनी की हालत काफी बिगड़ जाती है और इस सीन में सुशांत अपने अभिनय से किसी पत्थर दिल इंसान को भी रुला सकते है। फिलहाल किज्जी मैनी को उसके मना करने के बाद भी अस्पताल पहुंचाती है और अब सब को किसी अनहोनी का डर सताने लगता है।
इसके आगे क्या होता है इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी लेकिन इस फिल्म का अंत आपको एक गहरी उदासी के साथ छोड़ जाता है। क्योकि जो हादसा सुशांत की निजी जिंदगी में हुआ है उसका एक पहलू आप एक कुदरती रूप में उसके आखरी सीन में देखेंगे जिसमे आप सुशांत सिंह राजपूत को नम आखो से विदाई देते है।
फिल्म के कलाकार
ये फिल्म मशहूर नॉवेलिस्ट जॉन ग्रीन की किताब ‘दा फाल्ट इन आवर स्टार्स’ पर आधारित है। जिस पर दो साल पहले एक अंग्रेजी फिल्म भी बन चुकी है। फिल्म को जमशेदपुर की लोकेशन में फिल्माया गया है। फिल्म में संजना सांघी ने एक कैंसर पीड़ित का किरदार निभाया है जिसकी जिंदगी कभी भी ख़त्म होने वाली है। उसे संजना सांघी ने पूरी ईमानदारी से निभाया है और उनके बंगाली माता पिता के रोल में बेहद अनुभवी कलाकार स्वस्तिका मुख़र्जी और सास्वता चटर्जी ने अपनी भूमिका से फिल्म में कुछ खट्टे मीठे पल दिए है। सुशांत के दोस्त के रूप में जे पी (साहिल वैद्य) भी कई मौकों पर भावुक कर जाते है। खासतौर पर चर्च वाले सीन में इस फिल्म में सैफ अली खान सिर्फ एक सीन में दिखते है जो ठीकठाक है।
संगीत एवं पटकथा
ए. आर. रहमान ने फिल्म के हर गाने को दिल को छू लेने वाला बनाया है इमोशनल गानों के साथ फिल्म की कहानी काफी अच्छे ढंग से आगे बढ़ती जाती है। फिल्म की कहानी शशांक खेतान और सुप्रोतिम सेनगुप्ता ने लिखी है। कुल मिलाकर ‘दिल बेचारा’ (Dil Bechara) सुशांत की आखिरी फिल्म के रूप में उनके फैंस के लिए यादगार रहेगी और सिनेमा के एक प्रतिभाशाली अभिनेता के इस तरह से चले जाने से उनकी कमी हमेशा फिल्म जगत में खलती रहेगी।