भारतीय वैदिक संस्कृति में मनुष्य जीवन पद्धति के आचरण का ज्ञान – विज्ञान समाया हुआ है। आयुर्वेद भारतीयता के लिए स्वाभिमान और आत्मगौरव को जगाने वाली विशुद्ध भारतीय चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद में भारतीय समाज और भौगोलिक क्षेत्र में व्याप्त ऋतु में हवा, धूप एवं अन्य प्राकृतिक तत्वों के क्या गुण होंगे एवं मनुष्य शरीर पर भौगोलिक वातावरण का क्या उचित अथवा अनुचित प्रभाव होने की संभावना होगी और इन सभी कारको से कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है, इन सभी का विस्तृत वर्णन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में मिलता है।
आयुर्वेदीय सिद्धांतों के अनुरूप आहार विहार और औषधि का सेवन कर मानव, जीवन में आने वाली बीमारियों से ना सिर्फ मुक्त होता है अपितु आयुर्वेद के सिद्धांतो का पालन कर प्राचीन काल से ही समस्त भारतीय निरोगी जीवन व्यतीत करते थे। भारतीय चिकित्सा पद्धति आर्युर्वेद प्राचीन हिंदुस्थान की एक वैदिक चिकित्सा प्रणाली है। शोधकर्त्ताओं के अनुसार आयुर्वेदीय चिकित्सा प्रणाली भारत में तकरीबन पांच हजार वर्ष पूर्व उत्पन्न हुई थी।
आयुर्वेद शब्द संस्कृत के दो शब्दों ‘आयुष’ जिसका तात्पर्य जीवन है, तथा ‘वेद’ जिसका अर्थ ‘विज्ञान’ है, से मिलकर बना है’ अतः इसका शाब्दिक तात्पर्य ‘जीवन का विज्ञान’ का विज्ञान है। अन्य चिकित्सा प्रणालियों के विपरीत आयुर्वेद रोगों के उपचार के बजाय स्वस्थ जीवनशैली पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का शरीर चार मूल तत्वों दोष, धातु, मल और अग्नि से निर्मित है। आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व है।
आयुर्वेद, मानवता की मूल स्वास्थ्य परंपरा, केवल एक चिकित्सा प्रणाली नहीं है, अपितु प्रकृति के साथ हमारे परस्पर संबंध की अभिव्यक्ति भी है। जहाँ वर्तमान में एलोपैथिक दवा रोग होने की मुख्य कारण पर ना जाकर इसको महज दूर करने पर केंद्रित होती है, वहीं भारतीय आयुर्वेद मनुष्य को होने वाली बीमारी के मूलभूत कारणों के साथ-साथ इसके इसके समग्र निदान के विषय में भी बताता है।
अनादिकाल से ही भारत में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शिक्षा मौखिक रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत ऋषियों द्वारा प्रदान की जाती रही है| एक अनुमान के अनुसार पांच हजार वर्ष पहले इस अलौकिक ज्ञान को ग्रंथों के रूप ढाला गया। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। इन प्राचीन ग्रंथो में प्रकृति में व्याप्त पंच महाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, आकाश एवं अग्नि तत्वों के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों तथा स्वस्थ एवं स्वस्थ व सुखी जीवन जीने के लिए संतुलित रखने के महत्ता को परिभाषित किया गया है।