उत्तराखंड सरकार नशे की गिरफ्त में आए युवकों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास कर रही है। इसी क्रम में निजी नशा मुक्ति केंद्रों को भी सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों के रूप में अधिसूचित करने की तैयारी की जा रही है। इस पर बीते शुक्रवार को गृह सचिव शैलेश बगौली की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की बैठक के दौरान चर्चा की गई। इन नशा मुक्ति केंद्रों में ऐसे नशे के आदी लोगों को रखा जाएगा, जो कि नशे की पूर्ति के लिए नशा तस्करी करते है।
उच्च स्तरीय बैठक में नशा मुक्ति के संबंध में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन ड्रग्स फ्री उत्तराखंड 2025 पर चर्चा हुई। अधिकारियों ने कहा, कि छोटी मात्रा में नशा तस्करी करने वाले अधिकतर नशे के आदी होते हैं, जो नशे के लिए इस धंधे में आते हैं। ऐसे में उन्हें जेल से ज्यादा पुनर्वास की आवश्यकता है। इसके लिए ऐसे निजी नशा मुक्ति केंद्रों को सरकारी के रूप में अधिसूचित करने पर विचार किया जा रहा है, जो नियम व शर्तों को पूरा करते हैं। इस पर आगामी समय में प्रस्ताव तैयार किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्तमान में अभी तक ऐसे लोगों को एनडीपीएस एक्ट के तहत जेल भेजा जाता है। अधिकारियों के अनुसार, नई व्यवस्था से ऐसे नशा तस्करों को समाज की मुख्य धारा में लाने में सहायता मिलेगी और जेलों पर भी अत्यधिक भार को कम किया जा सकेगा। पुलिस मुख्यालय में हुई बैठक में पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार समेत सभी वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
गौरतलब है, कि प्रदेश में नशा तस्करी और इसके आदी युवक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसकी चंगुल में फंसकर कई युवाओं का जीवन बर्बाद हो रहा और इनके परिजनों के सपने भी टूट रहे है। इस सबके बावजूद ऐसे युवाओं के इलाज के लिए प्रदेश में एक भी सरकारी नशा मुक्ति केंद्र नहीं है।
इसके साथ ही निजी नशा मुक्ति केंद्रों में नशा छोड़ने के लिए आने वाले युवकों के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की शिकायतें भी सामने आती रहती है। कई नशा मुक्ति केंद्रों में युवकों की पिटाई और उनकी मौत के मामले भी सामने आ चुके है। इस समस्या को देखते हुए सचिव गृह शैलेश बगौली ने निजी नशा मुक्ति केंद्रों को सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों के रूप में अधिसूचित किए जाने की बात कही है।
सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है, कि नशा छुड़ाने के नाम पर चल रहे देहरादून के नशा मुक्ति केंद्र किसी यातना गृह से कम नहीं है। इन केंद्रों में ना तो पर्याप्त सुविधाएं है और ना ही सुरक्षा की उचित व्यवस्था है। कई नशा मुक्ति केंद्र सिर्फ एक कमरे में संचालित हो रहे है और एक कमरे में 35 से 40 लोगों को भेड़-बकरियों की तरह ठूँस-ठूँस कर रखा जा रहा है।
नशा मुक्ति केंद्रों में नशा छुड़वाने के लिए फीस के रूप में तीन हजार रुपये से लेकर 35 हजार रुपये तक हर महीने वसूले जा रहे है, लेकिन किसी भी केंद्र में पर्याप्त स्टाफ तक उपलब्ध नहीं है। कई नशा मुक्ति केंद्र तो ऐसे है, जहां सीसीटीवी कैमरे, दैनिक रजिस्टर, शिकायती रजिस्टर, विजिटिंग रजिस्टर, सक्षम अधिकारी की टिप्पणी और अन्य विवरण तक उपलब्ध नहीं हैं।