पहाड़ी रास्तों से गुजरने वाले हर मोड़ के पीछे एक रहस्य होता है और इन्ही रहस्यों के पीछे छुपे होते है,शैतानी शक्तियों के राज।
हम लोग एक पहाड़ी राज्य के एक छोटे से कस्बे में रहते हैं। यह कहानी मेरी दादी ने मुझे बचपन में सुनाई थी। मेरे दादाजी सरकारी मुलाजिम थे। ऑफिस के काम की वजह से कई बार घर लौटने में देरी हो जाया करती थी। उस वक्त आज की तरह आधुनिक संसाधन नहीं हुआ करते थे। पहाड़ी रास्तों के बीच जंगल की पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता था। जो जंगल दिन में खूबसूरत नजर आते थे, वह रात के अँधेरे में किसी शैतान के रहने की जगह जैसी लगती थी।
मेरे दादाजी निडर स्वाभाव के थे और वो देर रात जंगलों को पार कर घर पहुंच जाते थे। उनके देर से आने पर कई बार उन्हें उनकी माँ से डांट भी पड़ती थी। लेकिन फिर एक रात जंगल के रास्ते से घर लौटने के दौरान उनके साथ घटी एक घटना ने उनकी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। क्योंकि उस रात उनका सामना हुआ एक प्रेतआत्मा से जिसका भयानक चेहरा और रूह कपाने वाली उसकी मौजूदगी ने उनके शरीर का खून जमा दिया था।
उस समय सर्दी के दिन चल रहे थे और रात कुछ जल्दी घिर जाती थी। दादा जी कुछ जरूरी काम होने की वजह से अपने ऑफिस में अधिक देर तक रुक गए थे। काम खत्म करने के बाद वह जंगल वाले रास्ते से घर की ओर चल पड़े। ठंड बहुत ज्यादा हो रही थी, शायद जल्दी बर्फ पड़ने वाली है। कोहरे की चादर ने आसपास मौजूद हर चीज को अपने अंदर छुपा लिया था। कोहरे की वजह से आस पास कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन दादा जी बचपन से उस रास्ते से आ जा रहे थे इसलिए उन्हें इस रास्ते की पूरी जानकारी थी।
रात में जंगलों में गूंजती अजीब अजीब आवाजें और कोहरे का सफेद रंग रात को और ज्यादा डरावना बना रहा था। तेज कदमो से घर पहुंचने की जल्दी में दादाजी को जंगल में किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी। इस सुनसान जंगल में औरत की आवाज को अपनी कल्पना मान दादाजी ने सोचा कि इतनी रात को जंगल में किसी के होने का सवाल ही नहीं होता और ये सोचते हुए वे घर की ओर आगे बढ़ने लगे।लेकिन जैसे ही दादाजी कुछ कदम आगे बढ़े उन्हें उस औरत की रोने की आवाज और जोर -जोर से सुनाई देने लगी। अब दादाजी से रहा नहीं गया और उन्होंने उस औरत की आवाज का पीछा करना शुरू कर दिया। उनके दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे, कि इस जंगल में रात को कौन रो रहा है? क्या उसे किसी तरह की मदद की जरूरत है? इसी सोच के साथ वो उस दिशा की ओर बढ़ चले जहां से रोने की आवाज आ रही थी।
कुछ कदम आगे जाने के बाद जंगल में पसरे कोहरे के बीच एक बड़े पेड़ के पीछे खड़ी एक रोती हुई औरत, जिसने अपने बालो से अपने चेहरे को ढका था। ठंड के मौसम में जैसे जैसे वो उस औरत के करीब पहुंच रहे थे, उनको और ज्यादा ठंड का अहसास हो रहा था। उस जगह से सड़ते हुए मांस की बदबू आ रही थी। औरत के नजदीक पहुंचने पर उन्होंने उस औरत से पूछा कि रात को इस जंगल में आप क्या कर रही है? परन्तु औरत ने बात को अनसुना कर में रोना जारी रखा और दादा जी की बातों का कोई जवाब नहीं दिया।
उस औरत के रोने की आवाज उस पूरे जंगल को और डरावना बना रहा था। इसके बाद दादा जी ने दोबारा उस औरत से पूछा, कि आपका घर कहां है? लेकिन उस औरत ने इस बार भी उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और रोती रही इसके बाद दादाजी ने खीजते हुए कहा कि फिलहाल इस वक्त तुम मेरे साथ मेरे घर चलो और सुबह तुम अपने घर चली जाना। इस जंगल में रहना तुम्हारे लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि यहां बहुत से जंगली जानवर भी रहते है।
घर जाने की बात सुनते ही उस औरत ने अचानक रोना बंद कर दिया और अपना सर उठाकर दादा जी की तरफ देखने लगी। अब दादाजी को चाँद की रोशनी में उस औरत का चेहरा दिख रहा था। उस औरत को चेहरा देखकर दादाजी के शरीर का मानो खून जम गया हो। औरत का आधा चेहरा उसके बेतरतीब बालों से ढका था। उसकी आंखों की पुतलियों का रंग सफ़ेद था और उसके काले नाखूनो को देखकर लगता था कि उसके शरीर में बहने वाले खून का रंग भी काला पड़ गया हो। और उस औरत के शरीर से आती बदबू ने उनका साँस लेना भी दूभर कर दिया था।
अब तक दादा जी को समझ में आ चुका था कि वह किसी प्रेतात्मा को अपने साथ घर चलने की इजाजत देकर बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं। उस प्रेतात्मा ने मेरे दादाजी से कहा तुमने मुझे अपने घर आने का बुलावा दिया है, और आज से मैं तेरे घर में ही रहूंगी। दादाजी जानते थे, की वे उस जंगल में प्रेतआत्मा का मुकाबला अकेले नहीं कर सकते इसलिए चुपचाप अपने घर की ओर चल पड़े और उनके पीछे-पीछे वो प्रेतात्मा भी चलने लगी। पूरे रास्ते दादाजी न ही उस औरत से कोई बात की,और ना ही दोबारा उस प्रेतात्मा को पीछे पलट के देखने की हिम्मत की।
दादाजी के घर लौटने में बहुत ज्यादा देर होने की वजह से दादाजी की माँ परेशान होकर घर के आंगन पर खड़ी होकर अपने बेटे का इंतजार कर रही थी। तभी दूर से कोहरे के बीच उन्हें दादाजी आते हुए दिखे, लेकिन अपने बेटे को वापस घर आता देख वो खुश होने की बजाय परेशान हो गई। जैसे ही दादा जी अपने घर के बाहर पहुंचे तो उनकी मां ने उनसे तेज आवाज में कहा, कि ये किसे अपने साथ ले आया है।
इसके बाद दादाजी ने डरकर पीछे मुड़कर देखा तो उस प्रेत आत्मा को देखकर दादाजी घर के बाहर बेहोश होकर गिर पड़े। दादाजी की माँ अपने कुलदेवता पर अटूट विश्वास रखती थी और नित्य उनकी पूजा किया करती थी, और इसी की वजह से घर के चारों तरफ फैली कुलदेवता की शक्ति के कारण वो प्रेतात्मा घर में घुस नहीं कर पा रही थी। घर के भीतर तो सभी उस प्रेतात्मा से सुरक्षित थे, परन्तु दादा जी घर के बाहर बेहोशी की हालत में पड़े थे और बाहर दादाजी को उस प्रेतात्मा से जान का खतरा था।
अब दादा जी की माँ ने पूर्ण विश्वास के साथ अपने कुलदेवता को याद करने लगी और कुलदेवता से अपने परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी। दादाजी की माँ के शरीर में अब उनके कुलदेवता प्रवेश कर गए थे। हमारे पहाड़ी गांव में आज भी परिवार के कुलदेवता मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उन्हें अपने दर्शन देते हैं और उनकी समस्या को हल करते है।
दादाजी की माँ ने प्रेतआत्मा से कड़क आवाज में पूछा तू यहां क्यों आयी है क्या चाहती है तू ? इस पर प्रेतआत्मा ने कहा मैं तेरे घर अपनेआप नहीं आयी हूँ, तेरे बेटे ने मुझे घर आने को कहा था और अब में तेरे बेटे को भी अपने साथ अपनी दुनिया में लेकर जाऊंगी। इसपर दादा जी की मां ने गुस्से में कहा कि अगर तूने मेरे बेटे को कोई नुक्सान पहुंचाया, तो मै तेरा वजूद मिटा डालूँगी और इसके साथ ही उन्होंने अपने पास ही मौजूद चूल्हे से एक जलते कोयले को हाथ में उठाकर उस प्रेत आत्मा की ओर फेंका जिससे वो प्रेतात्मा तिलमिला गयी और बोली अगर तू अपने बेटे की जान बचाना चाहती है, तो मुझे उसकी जान के बदले दूसरी जान चाहिए।
दादाजी की माँ ने प्रेतात्मा की बात सुनते ही आंगन में बंधी बकरी को खोल दिया और उस प्रेतात्मा से बोली, अगर जान लेनी ही है, तो इस बकरी की लो ,लेकिन मेरे बेटे को छोड़ दो। भयानक हंसी हंसती हुई, उस प्रेतआत्मा ने उस बकरी के गर्दन में अपने दांत गाड़ दिए और बकरी के शरीर से खून पीने लगी उसके बाद उस प्रेतात्मा ने बकरी के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर खून और मांस से अपनी भूख मिटा कर चली गयी।
दादी ने बताया कि दादाजी को इस घटना के पूरे दो दिन के बाद होश आया था। उस प्रेतात्मा के प्रकोप से बचने के लिए घर में कुलदेवता का पूजा पाठ भी कराया गया। इस घटना के बाद दादाजी इतने डर गए थे, कि उन्होंने अपने ऑफिस के पास ही एक कमरा किराये में ले लिया था और दोबारा रात में अकेले उस जंगल में कभी नहीं गए। कुछ गांव वालो का मानना हैं, कि आज भी उस जंगल में रात को किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई देती है।