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सुप्रीम कोर्ट (चित्र साभार : NDTV)
मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियों की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त वादे करने का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के मुफ्त के वादे करने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, कि लोगों को अगर राशन और पैसे मुफ्त मिलते रहेंगे, तो इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगी।
चुनावी रेवड़ी बाँटने के मामले में बुधवार (12 फरवरी 2025) को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश जार्ज मसीह की खंडपीठ ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए चुनाव से पहले मुफ्त चीजें देने की प्रथा पर असहमति जताई। कोर्ट ने कहा, कि बेघर लोगों को मुख्यधारा के समाज में शामिल किया जाना चाहिए।
याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा, कि लोगों को मुफ्त राशन और पैसे मिलने के कारण वे काम करना नहीं चाहते है। खंडपीठ ने कहा, कि गरीबों को मुख्यधारा में शामिल नहीं कर हम ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं जो दूसरो पर आश्रित होते जा रहे हैं।
बता दें, कि याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया, कि सरकार ने शहरी इलाकों में आश्रय स्थल की योजना को बीते कुछ वर्षों से फंड देना बंद कर दिया है। इसके चलते इन सर्दियों में 750 से ज्यादा बेघर लोग ठंड से मर गए। याचिकाकर्ता ने कहा, कि गरीब लोग सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं और सिर्फ अमीरों की चिंता की जा रही है।
इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, कि कोर्ट में राजनीतिक बयानबाजी की इजाजत नहीं दी जाएगी। जस्टिस गवई ने कहा, “दुर्भाग्य से इन मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है। उन्हें बिना कोई काम किए ही राशि मिल रही है।”
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— News18 (@CNNnews18) February 12, 2025
पीठ ने कहा, “हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए और राष्ट्र के विकास में योगदान करने की अनुमति दी जाए।” वहीं केंद्र सरकार द्वारा पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ को बताया, कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने के लिए काम कर रही है, ताकि शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करने सहित कई मुद्दों का समाधान किया जा सके।
इस पर पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा, कि केंद्र के मिशन को लागू करने में कितना समय लगेगा। अब इस मामले की सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी। बता दें, कि खंडपीठ ने शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी। गौरतलब है, कि प्रधानमंत्री मोदी भी चुनाव में रेवड़ी बाँटने की प्रथा पर गंभीर चिंता व्यक्त कर चुके है।