श्री रामचरित मानस में “नवधा भक्ति” का एक प्रसंग है। कई प्रकार की भक्तियों में नवधा भक्ति की बड़ी महिमा है। नवधा भक्ति योग, ज्ञान, संध्यावंदन, ध्यान, तंत्र, कर्म सहित भक्ति मार्ग द्वारा मुक्ति का एक साधन है। प्रभु द्वारा नवधा भक्ति का उपदेश एक अनपढ़ भीलनी को दिया गया। वन में आदिवासी जिस प्रकार जीवन व्यतीत करते थे। उसी प्रकार वन में रहने वाली उस भीलनी का जीवन चल रहा था।
वह भीलनी साधारण भक्त नहीं थी, उसके अंदर बहुत बड़ी शक्ति थी। उस भीलनी की कथा कुछ इस प्रकार है। जब उस भीनली की आयु मात्र 15 -16 वर्ष की थी, उसके पिता ने उसका विवाह करना चाहा। आदिवासियों में जैसा की नियम है, उसी प्रकार से उस भीलनी की बारात आई। उस भीलनी के देखा, कि उसका पति 75 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति था। भीलनी ने उस वृद्ध को देखकर निश्चय किया, कि वह आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेगी।
भीलनी विवाह स्थान से उसी समय वहां से भाग गई। वह इतना छिपकर भागी की, किसी को यह ज्ञात ही नहीं हुआ, कि भीलनी कहा गयी। भीलनी को प्रभु पर उसका अटूट विश्वास था, कि भगवान किसी भी स्थान पर हो,वह उसकी रक्षा अवश्य करेंगे। वन में अकेली एक युवा स्त्री जो घर छोड़कर भाग गई है। आप कल्पना कीजिए, एक अनपढ़ युवती जिसमे कोई गुण नहीं था। फिर भी उसे किसी का भय नहीं था।
उस भीलनी को प्रभु पर ऐसा विश्वास था, कि वह विवाह का मंडप छोड़ कर वहां से भाग गई। आदिवासी जो जंगल में निवास करते है, उनका जीवन जंगल के सहारे ही चलता है। भीलनी आदिवासी कन्या जंगल में चलते चलते बहुत दूर चली आयी। एक स्थान पर उस भीलनी को एक तपस्वी सन्यासी की कुटिया दिखयी दी , किन्तु वह सन्यासी के पास नहीं गई।
भीलनी ने देखा, कि सन्यासी कब कुटिया से बाहर जाते हैं। सन्यासी स्नान के लिए नदी पर जाया करते थे, जो उस स्थान से अधिक दूरी पर स्थित था। जब संन्यासी स्नान करने के लिए नदी में जाते, तो भीलनी उस समय कुटिया में आती है, और कुटिया की पूरी साफ सफाई और लिप – पोत कर उस कुटिया से चली जाती। अनेक वर्ष बीत गए, संन्यासी भी यही विचार करते, कि यह प्रतिदिन कौन आकर इस स्थान की सफाई करके जाता है।
एक दिन कुछ इस प्रकार हुआ, कि जब भीलनी कुटिया की सफाई कर रही थी, तभी संन्यासी कुटिया में पहुंच गए। उन्होंने भीलनी को देख लिया। तपस्वी संन्यासी ने कहा, कि इतने वर्ष तुमने मेरी निष्काम भाव से सेवा की, अब इस कुटिया पर तुम्हारा अधिकार है। आज से इस कुटिया में तुम रहोगी। इस कुटिया में भगवान आकर तुम्हे दर्शन देंगे। उस समय भीलनी की आयु 25 से 28 वर्ष की थी।
भीलनी (शबरी) को आशीर्वाद देकर सन्यासी जाते-जाते यह भी बता गए, कि भगवान का सुमिरन किस प्रकार करना है ? भीलनी ना तो पढ़ी लिखी थी,और ना ही वह किसी प्रकार का कर्मकांड जानती थी। उसे भगवान की पूजा किस प्रकार करनी है, उसे इस बात का भी ज्ञान नहीं था। संन्यासी द्वारा जो बताया गया, भीलनी उसी प्रकार भगवान का चिंतन करती थी। वह भगवान का नाम जपती रहती थी। कुछ दिनों में उसकी ऐसी भावना बन गई थी, जो भी उस कुटिया के पास से निकलता, वह उस भीलनी को पागल कहता।
उस कुटिया के निकट से कई ऋषि मुनि भी निकले। ऐसे में भीलनी के मन में विचार उठते, कि भगवान राम इस मार्ग से आएंगे। तो वह भीलनी उस मार्ग में पड़े कंकड़, पत्थर और कांटे हटा देती, कि कही भगवान राम के पैर में ना लग जाए। फिर वह विचार करती, कि भगवान राम इस दूसरे मार्ग से भी आ सकते हैं। तो वह उस मार्ग की भी सफाई कर देती। इसी प्रकार उसे लगा, कि संभवत प्रभु कुटिया के पीछे वाली पगडंडी से आ सकते है। इसका परिमाम यह हुआ, कि भीलनी ने कुटिया की चारो दिशाओ में पगडंडी बना दी।
भीलनी मार्ग की पगडंडियों में कभी फूल डाल देती, कि कहीं भगवान के पैरो में कोई कांटा ना चुभ जाये। भीलनी को दृढ़ विश्वास था, कि सन्यासी द्वारा दिए गए आशीर्वाद के अनुसार उसे भगवान के दर्शन अवश्य होंगे। उस वन में अधिक अच्छे फल नहीं मिलते थे। उस जंगल में मात्र बेर उपलब्ध थे। भगवान को बेर खिलाने है, इसलिए भीलनी प्रतिदिन ढेर सारे बेर एकत्रित करती रहती।
अरण्यकांड में उल्लेख मिलता है, कि शबरी के पास आने से पूर्व भगवान राम, लक्ष्मणजी के साथ वन – वन भटक कर माता सीता को खोज रहे थे। जटायु का उद्धार कर, भगवान राम और लक्ष्मणजी सीता माता की खोज करते – करते शबरी की कुटिया में पहुंच गए थे।
शबरी ने देखा, कि तपस्वी संन्यासी द्वारा विवरण के अनुसार, भगवान के बाहु विशाल होंगे, जटाओ का मुकुट सर पर विराजमान होगा। कंठ में वनमाला होगी, वे अकेले नहीं आएंगे, वह दो आएंगे, एक श्यामल होंगे और दूसरा गोरे रंग के। दोनों भाई बन कर आएंगे। यह परिचय सन्यासी ने उस समय दिया था, जब पृथ्वी पर भगवान राम और लक्ष्मणजी का अवतार भी नहीं हुआ था।
माता सीता की खोज में वन – वन भटक रहे भगवान राम और लक्ष्मणजी को मात्र जटायु के माध्यम से यह ज्ञात था, कि रावण माता सीता को अपहरण कर अपने साथ ले गया है। शबरी ने भगवान राम को यह परामर्श दिया था, कि हे भगवन ,आप किष्किंधा पर्वत जाये, वहां आपको हनुमान जी मिलेंगे। हनुमान जी आपकी भेंट सुग्रीव से करवाएंगे। और सुग्रीव की सेना की सहायता से आप माता सीता को रावण से मुक्त करवा पाओगे।
शबरी ने भगवान राम को नहीं बुलाया था। किन्तु उसके मन में अटूट विश्वास था, कि तपस्वी संन्यासी के आशीर्वाद के फलस्वरूप उसे एक दी भगवान राम के दर्शन अवश्य होंगे। यही विचार करते – करते पूरे पचास वर्ष बीत गए थे। उसने उन पचास वर्षो में प्रत्येक क्षण भगवान राम का ध्यान किया था।
शबरी को पूजा पद्धति का ज्ञान नहीं था, वह तो बस राम – राम का नाम ही जपती थी। शबरी द्वारा 25 वर्ष की आयु में भगवान का ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया था, और जब भगवान राम द्वारा उसे दर्शन दिए, तब शबरी की आयु 75 से 78 वर्ष थी।
शबरी की भक्ति से भगवान श्रीराम अति प्रसन्न हुए और भगवान राम द्वारा शबरी को मोक्ष प्रदान किया था. शबरी जयंती भगवान राम के प्रति आस्था, प्रेम और विश्वास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही भगवान राम ने शबरी को दर्शन दिए थे।
नवधा भक्ति
श्री स्वामी प्रेमानन्द सरस्वती पुस्तक के अंश ..