सनातन हिन्दू आस्था के मान्यता अनुसार करवाचौथ का व्रत सुहागन महिलाओ के लिए बहुत ही फलदायी है। प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग की तिथि के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह शुभ दिन आता है।
इस दिन महिलाये अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और रात्रि में चंद्रमा के दर्शन और विधिवत पूजन के बाद उपवास को समाप्त करती है। इस वर्ष यह 4 नवंबर बुधवार की तिथि को पड़ रहा है।
भारतीय महिलाओ के इस करवा चौथ व्रत में श्रृंगार का भी विशेष महत्त्व है इस दिन सुहागने मेहंदी से लेकर सोलह श्रृंगार से सुसज्जित रहती है। इस व्रत में मिट्टी के करवे का पूजन किया जाता है।
इसके अलावा करवा चौथ माता की कथा सुनना भी बहुत आवशयक है करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव, गणेश, माता पार्वती और कार्तिकेय सहित नंदी जी की भी पूजा की जाती है
मान्यता है कि इस व्रत में चन्द्रमा का पूजन करने से वैवाहिक जीवन सुख का आगमन होता है। करवा चौथ में सुहागने मिट्टी के करवा एवं ढक्कन, पानी का लोटा, पवित्र गंगाजल, मिट्टी के दिए ,रूई की बाती, अगरबत्ती, शुद्ध चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, पुष्प , कच्चा दूध, दही, देसी घी, शहद, चीनी, हल्दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा के पैसे की आवश्यकता होती है।