फ़ूड अथवा भोजन का मतलब होता है, किसी भी खाने योग्य पदार्थ का सेवन करना होता है। जो इस कुदरत में रहने वाले प्रत्येक जीव के पोषण से सम्बंधित जरुरतो को पूरा करता है। ज़्यदातर पशु पक्षी एवं मनुष्य भोजन के लिए आम तौर पर वनस्पतियो ,मांस एवं अन्य स्रोतों पर निर्भर करते है।
प्रकृति द्वारा इन भोजन के स्रोतों में शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा (फैट), प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज लवण मनुष्य एवं प्रत्येक जीव का शरीर तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं द्वारा संचालित किया जाता है। पोषक तत्वों को भोजन के रूप में ग्रहण करने से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है एवं शरीर स्वस्थ एवं दीर्घायु को प्राप्त होता है।
मनुष्यो ने इस धरती पर भोजन प्राप्त करने के लिए कई अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्रों के अनुसार तरीके ईजाद किये हैं। प्राचीन काल में मानव जाती दो मुख्य तरीकों से भोजन को प्राप्त करती थी। जैसे जंगली जानवरो का शिकार करके संरक्षित करना एवं खेती जैसे कार्य करना।
मानव समाज द्वारा नए युग की आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियां तकनीकी के चलते, मनुष्य के जीवन में कई सरे बदलाव आ गए। उसकी खान पान की नयी शैली विकसित हो गयी अपने आस पास के वातावरण में उपलब्ध कृषि को अनुकूल बना कर उसे अपने रोजमर्रा के खाने में शामिल किया।
इस प्रकार सांस्कृतिक एवं भौगोलिक स्तर पर कई नयी भोजन बनाने की रेसिपी और कुजीन (Cuisine) यानि खाना पकाने की कलाओं का निर्माण एवं नए तरीके ईजाद किये गए। प्राचीन भारत में युगो युगो से भोजन में विभिन्न प्रकार की सामग्री, जड़ी-बूटियों, मसालों, खाना बनाने की तकनीकों और ढेर सारे व्यंजनों की एक बड़ी श्रृंखला है।
मानव जीवन जीने की शैली के तरीको में बदलाव और व्यस्त दिनचर्या में पौष्टिक भोजन का आभाव, यह दोनों मनुष्य शरीर पर बुरा प्रभाव डाल रहे है। भारत में विदेशी भोजन का प्रचलन बहुत तेजी से बड़ा है इस कारण भारतीय भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल ना होने की वजह से विदेशी भोजन भारत के लोगो की भोजन शैली को प्रभावित कर रहा है। वर्तमान में हिन्दुस्थान की हर गली कूचे में लगने वाले चाउमीन और मोमो के फ़ास्ट फ़ूड के स्टाल हमारे पारम्परिक भारतीय भोजन को चुनौती दे रहे है।
आज जहा पूरी दुनिया एक ग्लोबल बाजार बन गयी है और विभिन्न संस्कृतियों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वैश्वीकरण जैसी ताकतों के माध्यम से मिश्रित भोजन से जुडी परंपराओं और प्रथाओं ने बड़े शहरों का रुख किया। युगो -युगो से मानव सभयता के क्रमिक विकास में कई परिवर्तन हुए हैं। धरती पर रहने वाले प्राणियों का जीवन कठिनतम दौर से बहार निकल आया हैं। जिसकी कल्पना मानव समाज आज नहीं कर सकता है।
क्रमशः
शेष अगले भाग में