ब्रिटेन के बेलफास्ट इलाके में भारतीय समुदाय समेत अन्य जातीय अल्पसंख्यकों को नस्लवाद, और अलगाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बेलफास्ट सिटी काउंसिल द्वारा बेलफास्ट हेल्थ एंड सोशल केयर ट्रस्ट और पब्लिक हेल्थ के साथ संयुक्त एक अध्ययन में बताया गया है, कि गरीबी, जातिवाद और अलगाव की चुनौतियों के चलते इनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में उनकी सहभागिता प्रभावित होती है।
अध्ययन से ये जानकारी भी सामने आई है, कि एशियाई, अश्वेत और अल्पसंख्यक जातीय समुदायों के 150 से ज्यादा लोगों ने शिक्षा, आवास, नौकरी और नागरिक और राजनीतिक भागीदारी के क्षेत्रों में असमानता की बात कही है। बता दें, भारतीय समुदाय और चीन समेत अन्य जातीय अल्पसंख्यक दशकों से उत्तरी आयरलैंड, ब्रिटेन में रह रहे है, और अब दूसरी और तीसरी पीढ़ी की सबसे बड़ी प्रवासी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते है।
ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ओएनएस) 2021 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, बेलफास्ट में सबसे बड़े जातीय समूह में वे नागरिक शामिल थे, जिनकी पहचान श्वेत (92.9 प्रतिशत) के रूप में हुई, इसके बाद चीनी (1.37 प्रतिशत), भारतीय (1.26 प्रतिशत), मिश्रित जातीयता के लोग (1.2 प्रतिशत) और ब्लैक अफ्रीकन (1.19 प्रतिशत) है।
अध्ययन में यह भी जानकारी सामने आई है, शहर के 90 फीसदी आबादी की तुलना में तीन-चौथाई अल्पसंख्यक जातीय और प्रवासीयों ने बेलफास्ट में स्वयं को सुरक्षित महसूस किया, और 38 फीसदी लोगों ने बेलफास्ट में नस्लवादी घृणा अपराध का अनुभव किया और 41 फीसदी ने अन्य संदर्भों में भेदभाव का अनुभव किया है।
गौरतलब है, कि ब्रिटेन के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने हाल ही में खुलासा किया था, कि उन्होंने ब्रिटेन में नस्लवाद का अनुभव किया था, लेकिन देश ने तब से इस मुद्दे से निपटने में उल्लेखनीय प्रगति की है। पिछले हफ्ते ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ओएनएस) 2021 की जनगणना के अनुसार, ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की आबादी 2.5 फीसदी (14.12 लाख) से बढ़कर 3.1 फीसदी होने के साथ ब्रिटेन में सबसे बड़ा गैर-श्वेत जातीय समूह बन गया है।