इंदौर की फैमली कोर्ट ने एक विवाहित महिला को निर्देश दिए है, कि वह अपने पति को पांच हजार हर महीने गुजारा भत्ता दे। महिला की शादी 2021 में हुई थी। महिला के पति ने अपनी पत्नी पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था। गौरतलब है, कि पत्नी को गुजारा भत्ता दिए जाने के आदेश के कारण यह मामला सुर्खियों में है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उज्जैन के रहने वाले अमन की नंदिनी से वर्ष 2020 में फ्रेंडशिप हो गई थी। कुछ वक्त के बाद नंदिनी ने अमन को शादी का प्रस्ताव दिया। हालाँकि, अमन ने यह प्रस्ताव इसलिए स्वीकार करने से मना कर दिया, क्योंकि वह अभी 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। युवक ने कहा, कि वह पढ़ाई पूरी होने के बाद ही शादी कर सकता है। इस पर नंदिनी ने शादी ना करने पर आत्महत्या की धमकी देनी शुरू कर दी।
इसके चलते अमन ने 2021 में आर्य समाज मंदिर में नंदिनी से विवाह रचा लिया। हालाँकि इस दंपति का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिन खुशगवार नहीं रह पाया और महीने भर बाद ही दोनों के बीच तू-तू- मैं-मैं शुरू हो गई। अमन ने दावा किया, कि उसकी पत्नी उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करती थी। विवाद अधिक बढ़ने पर अमन पत्नी से अलग होकर अपने परिजनों के पास रहने लगा। इसके बाद नंदिनी ने अमन के लापता होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाई।
इसके साथ ही नंदिनी ने अमन के खिलाफ दहेज मांगने और प्रताड़ित करने का केस भी दर्ज करवा दिया और भरण पोषण की माँग की। इसके जवाब में अमन ने भी एक मामला दर्ज करवाते हुए नंदिनी पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। उसने कहा, कि नंदिनी के दबाव में जल्दी शादी करने के चक्कर में उसकी पढ़ाई अधूरी रह गई, जिसके चलते वह बेरोजगार है। दूसरी तरफ नंदिनी ने कोर्ट में पहले बताया था, कि वह एक ब्यूटी पार्लर चलाती है, जबकि बाद में उसने अपने आप को बेरोजगार बताया।
फैमिली कोर्ट ने इस मामले दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपने निर्णय में कहा, कि नंदिनी के बयानों में एकरूपता नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने अमन के पक्ष को उचित मानते हुए उसकी पत्नी नंदिनी को निर्देश दिए, कि वह पांच हजार प्रतिमाह दे, जिससे अमन का गुजारा हो सके। अमन के वकील मनीष झारोला ने कहा, कि संभवतः यह मध्य प्रदेश में ऐसा पहला मामला है, जिसमें पत्नी को यह आदेश हुआ है, कि वह अपने पति को गुजारा भत्ते की धनराशि दे।
उल्लेखनीय है, कि हिन्दू विवाह अधिनियम में महिला और पुरुष के विवाह, तलाक और भरण पोषण संबंधी मुद्दों के लिए 1955 में बनाये गए एक्ट के अंतर्गत गुजारा भत्ता को लेकर नियम लिंगनिरपेक्ष है। इसका तात्पर्य यह है, कि पति और पत्नी दोनों ही एक दूसरे से गुजारा भत्ते की राशि की माँग कर सकते है। ऐसे में यह कोर्ट का अधिकार होगा, कि वह किसे यह आदेश देता है। पूर्व में भी ऐसे ही मामले सामने आए हैं, जिसमें पत्नी को अपने पति को पैसे देने का आदेश जारी हुए है।
हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत कहा गया है, कि मुकदमे के दौरान पति या पत्नी, दोनों में से जिसके पास भी अपने खर्चे चलाने और मुकदमे का खर्चा उठाने के लिए कोई स्वतंत्र आय स्रोत ना हो, तो वह अपने साथी से इसकी माँग कोर्ट के जरिए कर सकता है। यही नियम दोनों के तलाक के समय दी जाने वाली धनराशि और बाद में दिए जाने वाले भरण पोषण पर लागू होंगे।