गढ़वाल के विशिष्ट देवताओं में भगवान बद्रीनाथ जी के बाद भगवान केदारनाथ जी का नाम आता है। बद्रीनाथ धाम सिंधु तट से 11753 फीट की ऊंचाई पर स्थित है तथा केदारनाथ 22044 फिट ऊंचे शिखर पर विराजमान है। केदार का अर्थ दलदल होता है, और हो सकता है, कि प्राचीन काल में यहां की भूमि दलदल वाली रही हो, जो समय के साथ ठोस होती चली गई।
भगवान शिव ने केदार कल्प ग्रंथ में स्वयं केदारनाथ भूमि की प्रशंसा करते हुए कहा है, कि जिस प्रकार मै अत्यंत प्राचीन हूं, उसी प्रकार यह केदार भूमि भी प्राचीन है। ब्रह्मा जी ने जब प्रकृति रचना करने के लिए विचार किया, तो भगवान शिव शंकर सर्वप्रथम केदारनाथ की पावन भूमि पर अवतरित ही हुए थे। केदारनाथ की तीन चोटियों है इन तीन चोटियों के बीच में भगवान केदारनाथ जी का मंदिर है, और इन तीनो का एक ही नाम है स्वर्गारोहिणी। पांडव इसी मार्ग से होकर स्वर्ग को गए थे, इसलिए इसको स्वर्गारोहिणी कहा गया।
“पौराणिक कथाओं के आधार पर यह माना गया है कि सतयुग में केदार नाम के एक राजा ने यहाँ तप किया था जिसके नाम से यह स्थान केदारनाथ कहलाया।”
विद्वानों ने प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया है, कि इस स्थान की प्रतिष्ठा 2000 वर्ष पहले हो चुकी थी, और कुछ का यह मानना है, कि शंकराचार्य जी ने केदारनाथ मंदिर की स्थापना की थी। केदारनाथ का मंदिर पांडवों से भी पहले का है, परंतु इसका स्वरूप क्या था यह निश्चित रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता है। शिवपुराण की कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों को जब मानसिक अशांति हुई, तो महर्षि वेदव्यास जी के उपाय अनुसार गोत्र हत्या का दोष दूर करने के लिए उन्हें पांडवों को केदारनाथ की यात्रा और पूजन का परामर्श दिया।
पांडव जब आदेश के अनुसार, केदारनाथ पहुंचे तब भगवान शंकर पांडवों को देख कर भैसे का रूप धारण कर भूमिगत हो गए। यह देख भीम ने दौड़कर उनका पिछला भाग पकड़ लिया। पांडव व्याकुल और अशांत थे, यह देख भगवान शंकर ने उन पर कृपा कर उन्हें दर्शन दिए और शिला रूप अपने पृष्ठ भाग के पूजन का आदेश देकर अंतर्ध्यान हो गए।
भगवान शिव का शिला रूप इतना फैला की भूमि के अंदर ही अंदर नेपाल तक पहुंच पहुंच गए.गढ़वाल में उनके शरीर के चार भाग विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए जैसे भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में नाभि मदमहेश्वर में तथा जटा कल्पेश्वर में। इस प्रकार भगवान शिव केदारनाथ सहित पांच भागों में विभक्त हुए और यही कालांतर में पंच केदार कहलाये।
केदारनाथ भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। केदारनाथ के मंदिर के निर्माण के विषय में राहुल सांस्कृत्यायन ने अपना निष्कर्ष दिया है, कि मंदिर ने तीन कालखंड देखे हैं पहले कालखंड में यहां के लेख और मूर्तियां यह बताती है की यह मंदिर गुप्त काल के बाद विद्यमान था। द्वितीय कालखंड में यह संपूर्ण मंदिर नए सिरे से बनाया गया, जिसका प्रमाण गर्भ गृह में मौजूद मंडप में रखी मूर्तियां है, जो 13वी शताब्दी के पीछे की नहीं है।
तृतीय कालखंड में मंदिर का पुनः जीणोद्धार हुआ जब शिखर के नए निर्माण के साथ 18 वीं सदी में मंडप जोड़ा गया, परंतु इस सिद्ध पीठ को किसी निश्चित समय की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है। केदारनाथ धाम अपने आध्यात्मिक तथा प्राकृतिक सौंदर्य के कारण गढ़वाल हिमालय का दूसरा देवता है। केदारनाथ पहुंचकर भक्तों,योगियों और तीर्थ यात्रियों को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है।देवताओं में केदारनाथ और बद्रीनाथ गढ़वाल के दो नयन है, जिनके पावन दर्शन प्राप्त करने के लिए प्रतिवर्ष लाखों की संख्या भक्त यात्रा करते हैं।