केरल उच्च न्यायलय ने बुधवार (23 फरवरी) को अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है, कि व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल किसी मेंबर द्वारा भेजें गए आपत्तिजनक संदेश के लिए सीधे तौर पर ग्रुप एडमिन को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा, कि ग्रुप एडिमन का अधिकार महज किसी मेंबर को ग्रुप में जोड़ने अथवा निकालने तक ही सीमित है। इसके बाद व्हाट्सएप ग्रुप का कोई मेंबर उसमें क्या पोस्ट करता है, ये ग्रुप एडमिन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
Breaking: Admin of a WhatsApp group cannot be held liable for the objectionable post by a group member: Kerala High Court pic.twitter.com/qTJ1YjCu8c
— Live Law (@LiveLawIndia) February 24, 2022
पुलिस ने ग्रुप एडमिन को भी आरोपित बनाया था
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2020 के दौरान फ्रेंड्स नामक व्हाट्सएप ग्रुप में एक सदस्य ने बच्चों के आपत्तिजनक वीडियो शेयर कर दिए गए थे। इस मामले में पुलिस ने इस ग्रुप के को-एडमिन को भी आरोपित बनाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, व्हाट्सएप ग्रुप में वीडियो शेयर करने वाले के विरुद्ध पुलिस ने IT एक्ट अधिनियम, 2000 की धारा 67 बी (ए), (बी) और (डी) और यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) की धारा 13, 14 और 15 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया था।
मालिक-नौकर का संबंध नहीं
इस केस में पुलिस ने ग्रुप के दोनों एडमिन को भी आरोपित बनाया था। इसके बाद को-एडमिन ने केरल हाईकोर्ट की शरण ली थी। केरल उच्च न्यायलय के जज ने सुनवाई के दौरान कहा, इस प्रकार का कोई भी प्रावधान नहीं है, जिसके अंतर्गत ग्रुप एडमिन को किसी अन्य मेंबर द्वारा भेजे गए आपत्तिजनक मैसेज के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके। न्यायधीश द्वारा कहा गया, कि एडमिन किसी संदेश को प्राप्त या प्रसारित नहीं करता। संदेश भेजने वाले और एडमिन के बीच कोई मालिक-नौकर का संबंध नहीं होता है, और किसी सदस्य द्वारा भेजे गए मैसेज को सेंसर करना भी एडमिन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर चल रही क़ानूनी कार्यवाही को निरस्त किया
उच्च न्यायलय के न्यायाधीश के अनुसार, यह सिद्ध नहीं हो पाया, कि याचिकाकर्ता ने अश्लील पोस्ट को प्रचारित अथवा प्रकाशित किया था। इसके अतिरिक्त यह भी साबित नहीं हो पाया, कि याचिकाकर्ता ने इसे ऑनलाइन खोजा या अपलोड किया हो। कोर्ट ने कहा, कि याचिकाकर्ता प्रत्यक्ष तौर पर अपराधी साबित होता नहीं दिख रहा। केरल हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद याचिकाकर्ता पर चल रही क़ानूनी कार्यवाही को निरस्त कर दिया गया है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस कौसर एडप्पागथ द्वारा की गई।