भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन क्षेत्र को लेकर हुई झड़प में शामिल 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर लगभग 38 साल बाद मिला है। जानकारी के अनुसार, सोमवार को दिवंगत चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया गया। इसके बाद सैनिक सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तराखंड के रहने वाले 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी सुरक्षित बताया जा रहा है। परिजनों के मुताबिक अभी तक उन्हें जो सूचना मिली है, उसके अनुसार शहीद का पार्थिव शरीर अब भी सुरक्षित अवस्था में मौजूद है। चंद्रशेखर की पत्नी वीरांगना शांति देवी वर्तमान समय में हल्द्वानी में धान मिल के पास सरस्वती विहार कॉलोनी में रहती है। एसडीएम मनीष कुमार और तहसीलदार संजय कुमार ने परिजनों से मिलकर प्रशासन की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।
उत्तराखंड निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी सुरक्षित है । परिजनों ने बताया कि अभी तक उन्हें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार शहीद की पार्थिव देह अब भी सुरक्षित अवस्था में है । pic.twitter.com/OXyEb6usEF
— The Pillania (@ThePillania) August 15, 2022
रिपोर्ट के अनुसार, शहीद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर जब मिला, तो उनकी पहचान के लिए उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लिया गया। इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थी। बैच नंबर से सैनिक के विषय में पूरी जानकारी मिल जाती है। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाथीगुर बिंता निवासी चंद्रशेखर हर्बोला 19 कुमाऊं रेजीमेंट में लांसनायक थे। वह 1975 में सेना में भर्ती हुए थे। 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन के लिए युद्ध लड़ा गया था। भारत ने इस मिशन का नाम ऑपरेशन मेघदूत रखा था।
ऑपरेशन मेघदूत के दौरान मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने के चलते इसकी चपेट में आ गए थे। जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं बची थी। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च अभियान चलाया गया था, इसमें 15 सैनिकों के शव मिल गए थे, लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था।
उल्लेखनीय है, कि सियाचिन विश्व के सबसे अधिक दुर्गम सैन्य स्थलों में से एक माना जाता है। यह स्थान बेहद ऊंचाई पर स्थित है, जहां जीवित रहना एक साधारण मानव के वश की बात नहीं है। भारत के वीर जवान आज भी विपरीत परिस्थितियों ने सियाचिन पर अपनी ड्यूटी निभाते है। 1984 में देश के सैनिकों ने इस दुर्गम स्थान को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया था। इस अभियान के दौरान कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।