कोरोना महामारी के इस संकटकाल और लॉकडाउन के बीच यह संदेह व्यक्त किया जा रहा था, कि कोरोना संक्रमण का शिकार हिन्दुस्तान की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ सकता है,परन्तु तमाम आशंकाओं को दरकिनार कर किसानों ने अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन किया और सरकार ने भी रिकॉर्ड खरीदारी की। संतुलित वर्षा,सरकारी प्रोत्साहन और किसानों का अथक परिश्रम का परिणाम चालू फसल वर्ष 2020 -21 में खाद्यान्न की पैदावार पर दिखने लगा है।
कोरोना संक्रमण के आपदाकाल में भारत सरकार द्वारा किसानों के लाभ के लिए कई योजनाएं प्रारंभ की हैं। कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने के लिए तक़रीबन सभी प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था सुधारने में कृषि क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान को नजर में रखते हुए प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई, जिसका असर विगत पांच सालो की अवधि के दौरान कृषि उत्पादन पर नजर आने लगा है।
कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहे देश के सामने आज यह पहचान पाना सरल है, कि इस आपदाकाल में अपने कौन राजनीति लाभ के लिए किसानो के नाम पर तथाकथित किसान आंदोलन चला रहे है। एक ओर देश का किसान है, जो दिन रात कड़ी मेहनत के दम तो देश में रिकॉर्ड स्तर पर खाद्यान का उत्पादन कर रहा है। वही दूसरी ओर कोरोना की दूसरी लहर के सामने तथाकथित किसानों के नाम चलाए जा रहे आंदोलन के नेताओ से अपेक्षा थी, कि वह किसानों और गांव में फैल रहे संक्रमण की चिंता करते हुए किसान आंदोलन से भीड़ को कुछ समय तक दूर रखेंगे।
परन्तु तमाम दुष्परिणामों को दरकिनार करते हुए किसान नेताओ ने इसके उलट राजनीती जारी रखी है। किसान नेताओं ने संक्रमण ओर कर्फ्यू के मध्य 26 मई को आंदोलन के 6 माह पूर्ण होने होने पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। यह शक्ति प्रदर्शन ऐसे वक्त पर होगा, जब केंद्र ओर राज्य प्रशासन गावों में विकराल रूप ले चुके कोरोना संक्रमण की रोकथाम का प्रयास कर रही है। इसे राजनीतिक अवसरवाद की परकाष्ठा कहना उचित होगा कि कोरोना के इस संकटकाल पर भारत सरकार को प्रवचन देने वाली विपक्षी दल कांग्रेस,समाजवादी,शिवसेना,तृणमूल ,वामपंती दल सहित 12 राजनितिक दल इस विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन देने की घोषणा कर चुकी हैं।
किसान ने नाम पर आंदोलन चला रहे नेताओं को यह समझना चाहिए, कि देश के करोड़ों किसानो को वर्तमान में कृषि कानून जैसे सुधारों की अत्यंत आवश्यकता है। नरेंद्र मोदी सरकार आजादी के बाद पहली बार देश के हर किसान तक लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रही है। हिन्दुस्तान की राजनीति में 70 सालो में जिस प्रकार किसानों को दरिद्र और बदहाली का प्रतीक बनाकर रखा गया उसे बदलने का प्रयास आज केंद्र की मोदी सरकार कर रही है। किसानो को अपनी अवसरवादी राजनीति का शिकार बनाना, देश तथा देश के किसानो के आर्थिक हितो पर चोट करता है।