समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव का आज सोमवार (10 अक्टूबर 2022) को देहांत हो गया है। दिग्गज नेता मुलायम सिंह पिछले काफी वक्त से अस्वस्थ चल रहे थे। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जीवन की अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मुलायम सिंह यादव के निधन पर शोक जताया है।
उल्लेखनीय है, कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव नए राज्य के गठन के पक्ष में शुरू से ही सहमत नहीं थे। देवभूमि उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारियों के दिलों में सदैव यह टीस रहेगी, कि मुलायम सिंह यादव के शासनकाल के दौरान 02 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा गोली कांड जैसी हृदयविदारक घटना घटित हुई थी।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों का दावा है, कि समाजवाद राजनीतिक विचारों से उत्पन्न ‘लोहिया आंदोलन’ में संघर्ष करने वाले मुलायम सिंह यादव ने कभी भी मुजफ्फरनगर की घटना के लिए प्रायश्चित नहीं किया और ना ही कभी उन दोषियों के विरुद्ध कोई कड़ी कार्यवाही की पहल की। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के शासनकाल के दौरान ही रामपुर तिराहा कांड घटित हुआ था। उस काली रात को आज भी आंदोलनकारी भूले नहीं है।
गौरतलब है, कि राज्य के गठन को लेकर आंदोलन संघर्ष मंच समिति अपना आकार ले चुका था, इसी मंच के आह्वान पर दो अक्तूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना निर्धारित किया गया था। आंदोलन की भावना के अनुरूप गढ़वाल और कुमाऊं मंडल से सैकड़ों बसों का काफिला 1 अक्तूबर की रात के दिल्ली के लिए निकला था।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारीयों के अनुसार, किसी को भी इस बात का जरा भी आभास नहीं था, कि कुछ ही क्षणों में हमारा सामना खौफनाक मंजर से होगा। रामपुर तिराहा गोलीकांड में उतराखंड के राज्य आंदोलनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं गईं थी, और इस गोलीकांड में कई आंदोलनकारियों की मौत भी हुई थी। रामपुर तिराहा गोलीकांड ने गुलाम भारत के इतिहास में घटित जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें ताजा कर दी थी।
पूर्व राज्य आंदोलनकारियों के अनुसार, रामपुर तिराहा पहुंचते ही गोलियों की आवाज आई, हमारी आँखों के सामने लाशें गिरी हुई थी, खून से लथपथ लोग, जलती गाड़ियां देखकर हमारी आंखों से बस आंसू बह रहे थे। थोड़ी देर बाद महिलाओं के साथ बदसलूकी की खबरें भी मिली। ये सब सुनकर और देखकर प्रत्येक उत्तराखंडी का दिल बैठ सा गया। पुलिस की लाठचार्ज के बाद कई आंदोलनकारियों को गंभीर चोटें भी आईं थी।
एक जनांदोलन के रूप में यह वह दौर था, जब कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे के नारे हवा में तैरा करते थे। हर कोई किसी ना किसी रूप में राज्य आंदोलन से जुड़ा हुआ था। दो अक्तूबर की सुबह तक 1994 में राज्य आंदोलनकारियों को मिले जख्म 26 साल के बाद भी आज तक भर नहीं पाए है। 1 अक्तूबर की वह काली रात दमन, बलप्रयोग और अमानवीयता की सीमाओं को पार करने वाली साबित हुई।
रामपुर तिराहा गोलीकांड त्रासदी का परिणाम भी सियासत को ठीक विपरीत ही मिला। राज्य आंदोलन की ज्वाला तेज हुई और “पहाड़ ने मुझे दिया ही क्या है” कहने वाले नेता रातों-रात खलनायक बन गए। यही वजह है, कि आज तक समाजवादी पार्टी देवभूमि उत्तराखंड में कभी भी अपना वजूद कायम नहीं कर पाई है।